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वसंतकुमारकहा
काउसग्गम्मि ठिओ सीहो नामेण मुणि सीहो ।। ८२७ ।। एसो तवणाभिमुो, आयव्वंतो सरीरनिरवेक्खो || लक्खिज्जइ उड्ढमुहो, गवेसयंतो व्व सिवमग्गं ॥ ८२८ ॥ जं रविकरतावेणं, इमस्स नीहरइ सलिलपत्थारी ॥ तं पावतुहिणपिंडं, झाणानलविलइयं मन्त्रे || ८२९ ।। धम्मं झियायमाणो झाणं सो सत्त चेव दिवसाणि।। निम्ममचित्तो निम्मलसीलो वक्कमइ तत्थेव ॥ ८३० ॥ अह सत्तम रयणीए सत्तम चरियस्स तस्स वरमुणिणो ॥ हासपओसपरिक्खा, कज्जेणं कोऊएणऽहवा || ८३१ ।। सुरकेसरिनामेणं, रक्खसनाहेण घोरतररूवा ॥ उवसग्गा पारद्धा, मंदरगिरिमावसंतेण ॥ ८३२ ॥ अहि-नउल- कोल-मयगल - बिडाल - करवाल-सीहरूवेहिं ॥ तस्सुवसग्गा विहिया, उवसग्गसिवं पि पत्तस्स ॥ ८३३ ॥ एवं तिन्नि निसाओ पच्चक्खं मज्झ दूसहा तस्स ॥ तेणुवसग्गा विहिया, न किं पि काउं अहं सक्को ॥ ८३४ ।। अह चितिउं पयट्टो इमस्स तियसाहमस्स को होही ॥ माणमरट्टघरट्टो, सुहडो सूरो य धीरो य || ८३५ || तो लवणसायराहिं बहिं, अवहिन्नाणेण पिच्छमाणेण || एयस्स निग्गहसहो, नन्नो दिट्ठो तुमाहिंतो || ८३६ ॥ काऊण मल्लरूवं सुरेण रणरंगमल्लणामेण || हरिय मए नयराओ समाणिओ तं सि इह धीर ! ॥। ८३७ ।। एसो रक्खसनाहो, मुणिनाहो एस निय निए कज्जे ॥ चिट्ठति दो वि पऊणा, जं जाणसि तं करिज्जासु ॥ ८३८ ॥ कुमरो जंपइ संपइ, दंससु तं मज्झ रक्खसं जेण ॥ चूरेमि तस्स दप्पं तह तुह पूरेमि मणइटुं ॥ ८३९ ॥ तो जक्खेणं तेणं तस्स कुमारस्स धणुहपमुहाणि ||
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