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चंद्रलेहाकहा
सिद्धा तुह त्ति अम्हे, मिलियाहिं सयलसिद्धीहिं ॥ ६४८ ॥ कणयमयरयणमंडियपवरासणपाणिचेल्लिया जुत्ता ॥ पडिहारदिन्नमग्गा, निज्जियसुरनारिसोहग्गा ॥ ६४९ ॥ नवतारुन्नरवन्ना, कमसो अत्थाण- मंडवे पत्ता ॥ तेण निवेणं एसा, जोइणीगणसामिणी दिट्ठा ॥ ६५० ॥ विष्फारियमुहकमलो, दावइ सीहासणं च नरनाहो || कह पणिवायं रायं, आसंसइ सा वि उवविट्ठा ॥ ६५१ ॥ मणवंछियत्थसिद्धी, सिद्धी निव्वाणनामिया सिद्धी ॥ अट्ठ पयारा जम्हा, सो जोगो तुह सिवं दिसउ || ६५२ ।। राया जंपइ अम्हे, सकयत्था तुज्झ दंसणा चेव ॥ तह विहु पुच्छेमि तुमं, जाणासि अच्छेरयं किं पि ।। ६५३ ।। सा आह दिवसनाहं, चंदं चंदं तु कमलिनी नाहं ॥
कारेमि ससत्तीए गेरुयचुन्नं व मेरुं पि ॥ ६५४ ॥ सग्गे वा दुग्गे वा को वि हु कज्जं करेज्ज जं गूढं ॥ जाणेमि तं पि करयलकलियामलकुवलयफलं व ॥ ६५५ ॥ हुं सिद्धो मह अत्थो, तुज्झ पसाएण जंपिरो एवं ॥ या आयरपुव्वं, नियए तं तइ धवलहरे ।। ६५६ ॥ सम्माण-दाण-भोयण-सिणाण पमुहाणि तीए कुव्वंतो ॥ राया गमेइ दियहं विवहविणोएहिं सयलं पि ॥ ६५७ ॥ ततो निसीहसमए, गीयं सुणिऊण भमइ नरनाहो || एयं मह पेच्छणयं, दंससु निययाए सत्तीए ॥ ६५८ ।। सा आह सयलहईनाह ! निदंसेमि तुज्झ एवं पि ॥ किं तु तुह नयण- -जुयले, पट्टतिगं बंधइस्सामि ॥ ६५९ ॥ तह तुह देहं दिव्वं, करेमि निययाए मंतसत्तीए । अन्नह तत्थ पवेसो न लब्भए कह वि नरनाह ! ॥ ६६० ॥ आमंति तेण भणिए, पभायसमयम्मि लिहियमंडलए ॥
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