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मणोरमा कहा
- अण्णया खरखरं सुकिरण - संताविय - महीमंडलो सरस- सहया र फल-मणोहरो, पुण तरुतल - जलद्दासेवणासत्त- सुहियसत्त-संघाओ गिम्हतावतवियमहिसिक्क-सरिज्ज माण- जलासओ अ[व] हीरिय घुसिण- गंध - तेल्ला हिलासो, महग्घविध-धाराहरहार- चंदण - तालियंट-लया- मंडव हम्मिय-तल -ससि - करुक्केरो, पउरपरिमल- पाडला - कुसुम-कय- कोदंड-कामकयत्थिय-सथल
जीवलोगो पत्तो गिम्हो |
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वेइल्लसारसत्तलि-सुयंध-गंधेण भरिय भुवणयले । तम्हा किलंत - पिउ [पिउ] भणतत्रप्पीय कुडुंबे ।। १०९ ।। खर-किरण-ताव-ताविय-सचराचर - तिहुयणे निदाहम्मि । गिरि-नयरनिवासिजणो खेयगुज्जाणमल्लीणो । ११० ॥
तं च केरिस-
रम्मावर - सिहर उज्जित आसण्णयं
। विविघणतुंग-रु- साहसंछष्णयं ।। १११ । कहि चिउरंत वर केलिफल - लुंबिक्खुवंतयं । सरस वर दक्ख उत्तत्तियावतयं ॥ ११२ ॥ चिणि जंबुयणि सोहंतयं । तहा दाडिमी - फुडिय - फलदंत-पिउ-पह-संतयं ।। ११३ ।। कहि चि विव्वंदुमासच्छ-सोहण - जणं । दीह - घण वंस - जालीहिं मोहियमण ॥ ११४ ॥ कहि. चि कप्पूर - मह - महिय - कक्कोलयं । देवदारु-पियंगू-तमालेलयं ।।११५।। कहि चिसिरिखंड-सोहत कयलीहरं । नाग- पुण्णाग - पोष्फलिणि वण-दीहरं ॥ ११६ ॥ sas[a]रु - निड्डयरसंरुद्धयं । पिप्पली - नागवल्लीहि उष्ण [य] द्धयं ।। ११७ ।। कहि चिदीसंत - कच्चूरहालिव्वयं । पयडसजाय - करमेज्झ करवंदयं ।। ११८ ॥ अण्णत्थ हरिय- कणियार-कंचणारट्टे । फुल्लंत सुरहिपाडल प[र] मलसम्मलिय- अलिवलयं ॥ ११९ ॥ फुल्लतासोय-कयंब-गंध-संवलिय-सीयलसमीरं । ईसिवियसंत - मालइ -हिय बंधुद्धरं धणियं ॥१२०॥ वेइल्ल-पुष्क-सयवत्तियाहि वियसंत केयइ-वणेण । कणवीर - कुसुम कोरिएहि ठाणेहि रमणीयं ।। १२१ ।। दर-वियसिय-वर-संदार-मणहरं बंधुजीवकयसोहं । कुज्जय-दमणय- मुचकुंद - रुद्दाम - गंधदं ॥ १२२॥ अण्णत्थ सयं निर्वाsयणोमालिय- कुसुमपुष्णं । सव्वोउयकु [सु]मभरो णमंततरुराइरमणीयं ॥ १२३॥ कत्थइ सिहिकुल - अइ-कलकेयारव-सवणसरिय- दइयाण । पिय विरहियाण नयणंसुएहिं संसित्त-धरणियलं । १२४ । कत्थइ. कलकोइल-सद्द-सवण - उक्कंटुलाहिं रमणीहि । घेत्तूण करे रमणो रमिज्जए रंजियमणाहि ।। कत्थइ पारावय-कूइएण सुयसारियाण व [र]वेण । संधुक्किज्जइ झीणो वि जत्थ मयणानलो धणियं ।। १२५ ।।
एवं विहम्मि रेवयमुज्जाणे कोलिऊण कंचिकालं रेवथनगं समारूढो नयरलोगो । सो रिसो
कत्थइ सीयल-लयहर-मणहर- पुक्खरिणि सरसियाइण्णो । कत्थइ पूईफल - नागवेल्लि वर मंडव-सणाहो । १२६ । कत्थइ निगुंजंतमलि[उ]लसंसग्ग-सीयल - समीरो । सुरयत्थि सिद्ध-गंधव्व-रुद्ध - रमणीय-वणसंडो ।।१२७।। ares झट्ट - निप्पप-नहचारिमुणिजणग्घविओ । कत्थइ कलकिण्णर-गीय-सवण- निष्फंदसारंगी ।। १२८ ।। कत्थइ धाउव्वाइय धणिय धम्मंत धाउण सासणो । कत्थइ ओसहि वर लयाणि खणिय वरवेज्जो ॥। १२९ ।। कत्थइ.अहोमुहट्ठिय-र[स] साहिज्जमाण वरवेज्जो । कत्थइ मउय - पसाहण समुज्जयाणेय जोगि जणो ॥ कत्थइ कावालिय-खुट्टमंत- संसाहणत्थ- मच्चत्थं । बलिदाण-समय- वाइय- डमरू डम [र भीसण] रखो ।। १३०।। कत्थइ नारंग-पियंगुत्तुंग सहयार लक्खरमणिज्जो । कत्थइ भमंत-भीसण रिछावलि जणिय जण खोहो ।१३१। कत्थइ केसरि-पुच्छप्पहार कंपंत - सिहर संघाओ । कत्थइ भमंत निव्विग्ध [सावय] संघाय दुल्लंघो ।। १३२ ।।
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