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________________ भक्तामरके कल्प अनुसार लिखे हुए कितने ही तंत्र का हमें कभी प्रयोगमें नहीं लाना चाहिए, ऐसा क्यों बताया गया हैं ? उन तंत्रों को हम गौर से पढे तो हमें जरूर ख्याल आयेगा कि कई तंत्रों को भले ही पूर्व के आचार्य भगवंतोने बनाया हो.. परन्तु वे आचरण या अमल में लाने के योग्य नहीं है | कारण कि ये तंत्र "मारण' ओर “उच्चाटन" आदि के लिए है । परन्तु मारण और उच्चाटन के लिये कोई भी इस मंत्र-तंत्र का उपयोग न करें, ऐसा भी मंत्र शास्त्र में उल्लेख हैं । अतः हम इन तंत्रों को सत्य मानते हुए भी इन मंत्रों एवं तंत्रों को प्रयोग योग्य नहीं मानते है । शास्त्रों में देव-लोक का वर्णन है तो नरक का भी वर्णन है... परन्तु मात्र शास्त्र में वर्णन होने से हमें नरक में जाने की क्रिया करना... यह आवश्यक नहीं है । कहने का तात्पर्य यही है कि किसी भी विशिष्ट कारण या किसी विषम परिस्थिति में शासन के महान विनाशक तत्त्वोंको दूर करने के लिये अत्यंत जरूरी हो तो ही इन मारण एवं उच्चाटन मंत्रों का उपयोग करना अन्यथा इसका उपयोग वर्जित है । आखिरकार इन तमाम चर्चाओं का निष्कर्ष क्या हैं ? उपरोक्त वर्णन से निष्कर्ष तो आ चुका है फिर भी एक बार पुनः विचार करते हैं। मंत्रो की आराधना जैन शासन की आराधना का एक महान एवं प्रमुख अंग है । जैसे अच्छे वैध से एवं योग्य दवाई से रोग दूर हो जाता है... ठीक वैसे ही मंत्रों के माध्यम से अनेक प्रकारकी सिद्धि के द्वारा हमारे कर्मो का क्षयोपशम एवं क्षय होता है । मंत्रों का अचिन्त्य फल, मंत्रों के अधिष्ठायक देव भी प्रदान करते है... अतः देव भी आदरणीय, अनुमोदयनीय एवं आराध्य हैं। ऐसे देवों और मंत्रों की आराधना मोक्षार्थी को सापेक्ष भाव से करनी चाहिये । जिन मंत्रों की परंपरा लुप्त हो गई है, उस मंत्र परम्परा को संनिष्ठ प्रयत्न से पुनः स्थापित किया जा सकता है । अभी भी कालानुसार मंत्र सिद्धि के फल देख सकते हैं... फिर भी आम्नाओं को अगर पुष्ट करने में आये तो इससे अनेक गुना फल प्राप्त हो सकता है। मंत्र मात्र भौतिक ही नहीं आध्यात्मिक फल भी प्रदान करते है एवं मोक्ष मार्ग की साधना में भी सहायक बनते है । प्रत्येक साधना के पहले नवकार मंत्र की आराधना का ख्याल रखना जरूरी है । नमस्कार मंत्र महामंत्र होने पर भी अन्य मंत्रो की भी अपने-अपने विषय में प्राधान्यता है। इतिहासकारों का मत एवं आशय भले कुछ भी हो परन्तु जैनों का अपना मंत्र-शास्त्र है और उसे संभाल कर रखना एवं उसमें वृद्धि करना यह जैन साधुओं का एवं जैन श्रावको का फर्ज ही नहीं कर्तव्य भी है । मंत्रों एवं तंत्रों की आराधना में कितने ही प्रयोग करना उचित नहीं हैं, अतः उन्हें नहीं करना चाहिये । परन्तु प्रत्येक प्रयोग का अपना अलग-अलग महत्त्व है... उसे स्वीकारना चाहिये। हमारा यह अनमोल मानव जन्म आत्मा से परमात्मा बनने के लिये ही है, उसी हेतु मात्र मंत्र शास्त्र का उपयोग स्व एवं पर में परमात्म तत्त्व प्रकट हो एवं उस परमात्म तत्व की सभी को प्रतीति हो...तथा जैन शासन का जयजय कार हो... ऐसी रीति से प्रवर्तन करना चाहिये। जैनम् जयति शासनम् २२८ रहस्य-दर्शन Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002588
Book TitleBhaktamara Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyashsuri
PublisherJain Dharm Fund Pedhi Bharuch
Publication Year1997
Total Pages436
LanguageSanskrit, English, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size50 MB
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