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भक्तामर यंत्र - ४३
Bhaktamara Yantra - 43
मत्तद्धिपेन्द्र-मृगराज-दवानला-हि
" ही अर्ह णमो वड्डमाणाणं।" भयहर भयहर भयहर भयहर भयहर
न । मो ।
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में यस्तावकं स्तवमिमं मतिमानधीते ॥४३॥ भयहर भयहर भयहर भयहर भयहर भयहर भयहर
भयहर भयहर भयहर भयहर
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| ग । व भयहर भयहर भयहर भयहर
"नमो हाँ ही हूँ ह्रौं ह्रः सग्राम-वारिधि-महोदर-बन्धनोत्थम।
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ऋद्धि-ॐ ह्रीं अर्ह णमो वड्डमाणाणं ।
मंत्र-ॐ नमो हाँ हाँ हूँ ह्रौँ हूः यः क्षः श्री ही फट् स्वाहा ।
प्रभाव-शत्रु परास्त होता है और शस्त्रादि के घाव शरीर में नहीं हो पाते ।
Defeating the enemy and becoming invulnerable to weapons.
144 Jain Education International 2010_04
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