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भक्तामर यंत्र - ३३
Bhaktamara Yantra - 33
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इत्थं यथा तव विभूतिरभूज्जिनेन्द्र! न ही अहँ णमो सम्बोसहिपत्ताणं।
दीदा
ताहक कुतो ग्रहगणस्य विकाशिनोऽ पि? ॥३३॥
अप्रतिचक्रे ही ठः ठः स्वाहा”
नै नमो भगवति अप्रतिचक्रे ऐं क्लीब्लूँ धर्मोपदेशनविधौ न तथा परस्य।
दौंदौ
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ऋद्धि-ॐ हीं अहँ णमो सव्वोसहिपत्ताणं । मंत्र-ॐ नमो भगवति अप्रतिचक्रे एँ की लूँ ॐ हाँ मनोवाञ्छितसिद्धयै नमो नमः
अप्रतिचक्रे ही ठः ठः स्वाहा । प्रभाव-दुर्जन वशीभूत होते है और उनका मुँह बन्द हो जाता है । Controlling the evil people and silencing them.
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