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________________ प्राथमिक ध्वजा कुम्भ पा सरोवर आस्तिक जगत् में सर्वोच्च सत्ता है-ईश्वर ! परमात्मा, भगवान, सिद्ध, बुद्ध, तीर्थंकर, गॉड (God) आदि हजारों नाम हैं उसके। जैन परम्परा में ईश्वर के दो रूप हैं(१) देहमुक्त ईश्वर-सिद्ध (२) सदेह ईश्वर-तीर्थंकर/अरिहंत तीर्थंकर/अरिहंत मनुष्य जाति के ही क्या, जीव मात्र के परम हितैषी, कल्याण-इच्छुक और उनके कल्याण हेतु धर्म मार्ग का प्रवर्तन/प्रवचन करने वाले वीतराग पुरुष होते हैं। उनकी जन-कल्याणकारी वाणी जीवमात्र के सुख, शान्ति एवं अनन्त आनन्द का मार्ग प्रशस्त करती है। जैन परम्परा में इस अवसर्पिणी काल में चौबीस तीर्थकर हुए हैं, जिनमें प्रथम तीर्थंकर हुए भगवान ऋषभदेव और अन्तिम तीर्थकर हुए भगवान महावीर। जैन मात्र के लिए ये तीर्थंकर परम आराध्य/उपास्य और पूजनीय हैं। उनके द्वारा बताये हुए मार्ग पर चलकर आत्मा की अनन्त शक्तियाँ/विभूतियाँ प्राप्त करने का प्रयत्न करना-यही जैन धर्म का लक्ष्य है। चौबीस तीर्थंकरों में भगवान ऋषभदेव तथा भगवान महावीर के जीवन चरित्र पर अनेक लेखकों ने लिखा है, किन्तु चौबीसों तीर्थंकरों के विषय में समग्र रूप में प्रामाणिक जानकारी देने वाला साहित्य बहुत कम लिखा गया है और बहुत ही कठिनाई से प्राप्त होता है। हमने सचित्र कल्पसूत्र का सम्पादन किया तब संक्षेप में तीर्थंकर चरित्र भी लिखा गया। क्योंकि वह सूत्र काफी विशाल है, इसलिए उसमें अधिक विस्तार कर पाना सम्भव नहीं था। तब भावना जागी कि चौबीस तीर्थंकरों का पावन/प्रेरक जीवन चरित्र रोचक शैली में, कुछ विस्तार के साथ स्वतंत्र रूप में लिखा जाये, तो सभी के लिए उपयोगी होगा। प्रारम्भ में सिर्फ ५० पृष्ठ में ही जीवन चरित्र देने की कल्पना थी, किन्तु संक्षिप्त करते-करते भी यह जीवन चरित्र काफी विस्तृत हो गया है। तीर्थंकरों के पूर्व जीवन की प्रेरक घटनाएँ तो बहुत कुछ छोड़नी पड़ी हैं। भगवान ऋषभदेव, भगवान अरिष्टनेमि तथा भगवान महावीर के जीवन चरित्र को भी बहुत संक्षिप्त करके ही दिया गया है। किन्तु फिर भी जो लिखा गया है, वह पाठकों के लिए पर्याप्त, ज्ञानवर्धक, रुचिकर और प्रेरणादायी सिद्ध होगा, ऐसा विश्वास है। __भगवती सूत्र, आचारांग, जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, समवायांग आदि सूत्रों में तीर्थंकरों के जीवन की घटनाएं, बिखरी हुई सी मिलती हैं। कल्पसूत्र में चौबीस तीर्थंकरों के नाम तथा युगों की सूची मात्र है; केवल ऋषभदेव, पार्श्वनाथ, अरिष्टनेमि, तथा महावीर के अति संक्षिप्त जीवन-वृत्त हैं। सर्वप्रथम आचार्य भद्रबाहु ने आवश्यक नियुक्ति-चर्णि में तीर्थंकरों का पावन जीवन-वृत्त संक्षिप्त शैली में गुम्फित करने का सुन्द र व ऐतिहासिक प्रयत्न किया है। उसके पश्चात् प्रवचनसारोद्धार तथा शीलांकाचार्य रचित चउप्पन्न महापुरिस चरियं, त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र (हेमचन्द्राचार्य) आदि में तीर्थंकरों का जीवन-वृत्त बहुत ही विस्तारपूर्वक सुन्दर शैली में प्रस्तुत हुआ है। आचार्य जिनमेन रचित आदिपुराण, गुणभद्र रचित उत्तरपुराण, यतिवृषभाचार्य रचित तिलोयपण्णत्ती आदि ग्रन्थों में भी तीर्थंकरों व चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव आदि शलाका पुरुषों का जीवन-वृत्त प्राप्त होता है। प्राकृत-संस्कृत-अपभ्रंश भाषा में तीर्थंकरों के जीवन पर काफी ग्रन्थ व सामग्री मिल जाती हैं। समुद्र विमानभवन राशि निधूम अग्नि मल्लि मुनिसुव्रत नमि अरिष्टनेमि पाव महावीर Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002582
Book TitleSachitra Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1995
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size13 MB
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