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________________ अपम (1) अति (७) सम्म (2) अभिनन्दन (1) सुमति ( ) पलभ) ऋषभ अजित सम्भव अभिनन्दन सुमति पदाप्रभ १८.भगवान अरनाथ सिंह UN वृषभ हस्तिनापुर के राजा सुदर्शन की महारानी महादेवी एक बार महलों में सोयी थीं। रात्रि में उन्हें १४ दिव्य स्वप्न दीखे। रानी ने आनन्दित होकर महाराज को स्वप्न बताये तो स्वप्नपाठकों से पूछने पर उन्होंने कहा"महादेवी के गर्भ में कोई चक्रवर्ती सम्राट् या धर्म चक्रवर्ती की पुण्यशाली आत्मा आयी है।" एक दिन पुनः रानी ने रत्नों का चमकता छह आरों (चक्रों) वाला सुन्दर चक्र देखा। स्वप्न में चक्र (अर) देखने के कारण ही पुत्र जन्मोत्सव पर बालक का नाम “अरनाथ" रखा गया। अरनाथ ने यौवन वय में दिग्विजय यात्रा की, छह खण्ड के राजाओं को अपने अधीन किया। दीर्घकाल तक इस अवसर्पिणी काल के सातवें चक्रवर्ती का पद भोगने के पश्चात् एक दिन प्रकृति में आये ऋतु-परिवर्तन पर चिन्तन करते हुए अन्तर्लीन हो गये-इसी चिन्तन से वे अन्तर्मुखी बने और उन्होंने छह खण्ड का विशाल साम्राज्य त्यागकर दीक्षा धारण कर ली। ___ तीन वर्ष तक छग्रस्थ काल में विचरते हुए आप एक बार हस्तिनापुर के सहसाम्र वन में पधारे। आम्र वृक्ष के नीचे ध्यानारूढ़ हो गये। शुक्ल ध्यान की उच्च श्रेणी पर चढ़ते हुए आपने सर्वप्रथम शुक्ल ध्यान रूपी अग्नि से मोह कर्म रूपी महामल्ल को भस्म किया। मोह को जीत लेने पर ज्ञानावरण, दर्शनावरण, अन्तराय नामक घाती कर्म शत्रुओं का नाश किया और फिर निर्मल केवलज्ञान दर्शन प्राप्त कर सर्वज्ञ बने। (चित्र A-1) केवलज्ञान होने पर उसी आम्र वृक्ष के नीचे देवताओं ने समवसरण की रचना की। हज़ारों देव-मानव धर्म सभा में उपस्थित हुए। प्रथम धर्म देशना में राग-द्वेष रूपी शत्रुओं को विजय करने पर प्रभु ने विस्तृत प्रवचन दिया। ___ आपके प्रथम प्रवचन में ही हजारों व्यक्तियों ने मुनि धर्म ग्रहण किया। ३२ गणधर हुए जिनमें मुख्य गणधर थे-कुंभ। ८४ हजार वर्ष का आयुष्य भोगकर भगवान अरनाथ ने सम्मेदशिखर पर निर्वाण प्राप्त किया। भगवान अरनाथ के तीर्थ में निर्वाण के पश्चात् छठे, सातवें वासुदेव तथा बलदेव एवं आठवें सुभूम नामक चक्रवर्ती हुए। लक्ष्मी पुष्पमाला 18. BHAGAVAN ARNATH सय । King Dhanpati of Susima city in Mahavideh area took Diksha from Samvar Muni and after acquiring Tirthankar-nam-and-gotra-karma he reincarnated in the Graiveyak dimension of gods. From there he descended into the womb of Illustrated Tirthankar Charitra ( ६८ ) सचित्र तीर्थकर चरित्र Jameducatmommernational-20TOD For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.002582
Book TitleSachitra Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1995
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size13 MB
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