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४. भगवान अभिनन्दन
ध्वजा
मंगलावती नगरी के महाबल राजा, राजा होकर भी बहुत ही सीधे और विनम्र वृत्ति के थे। लोग उनका आदर और प्रशंसा करते तो वे सोचते, मुझमें ऐसी कोई भी योग्यता नहीं है, न कोई विशेषता है, फिर ये मेरी प्रशंसा क्यों करते हैं? यदि कोई निन्दा करता तो वे बड़ी सरलता के साथ कहते-“आप बहुत हितैषी
और सच्चे हैं, सो मुझमें रहे दुर्गुणों को प्रकट कर मुझे निर्दोष होने में सहायता करते हैं।" इस प्रकार की गहरी सरलता और उत्कृष्ट विनम्रता के कारण, संयम लेने पर वे समस्त मुनि-संघ में एक आदर्श बन गये। कहा गया है-इस उत्कृष्ट विनम्रता और सरलता के कारण उनकी आत्मा इतनी पवित्र हो गई कि उसी भव में उन्होंने तीर्थंकर-नाम-कर्म का उपार्जन कर लिया। ___ महाबल मुनि शरीर त्यागकर विजय नामक अनुत्तर विमान में देव बने। देव आयुष्य पूर्णकर अयोध्या के राजा संवर की रानी सिद्धार्था के गर्भ में अवतरित हुए। माता ने १४ स्वप्न देखे। पूर्व-जन्म के विनय एवं सद्भावों/संस्कारों के कारण उनके गर्भ में आते ही माता-पिता आदि समस्त राज-परिवार में विनय के, एक-दूसरे का सम्मान, वन्दन/अभिनन्दन करने के भाव स्वतः स्फुरित होने लगे। अयोध्या नगरवासी जनता में एक सहज वातावरण बन गया। बूढ़े, युवक, बालक सभी परस्पर एक-दूसरे का स्वाभाविक अभिवादन/वन्दन करते और एक-दूसरे के सद्गुणों का अभिनन्दन। विद्वान् ज्योतिषियों से पूछने पर उन्होंने बताया-“यह सब रानी के गर्भ में पलने वाले महापुरुष का ही प्रभाव है। एक भाग्यशाली व्यक्ति के पुण्य परमाणुओं से लाखों लोगों के मन प्रभावित हो जाते हैं।' ___ माघ शुक्ला द्वितीया को पुत्र का जन्म हुआ। जन्मोत्सव पर राजा ने प्रजा को बताया-“इस पुत्र के गर्भ-प्रभाव से समूचे राज्य में अभिनन्दन (आनन्द एवं अभिवादन) की प्रवत्ति की सहज रूप में वृद्धि हुई इसलिए इस पुत्र का नाम अभिनन्दन रखते हैं।" (चित्र G-2/द)
युवा होने पर राज्याभिषेक हुआ। फिर वैराग्य होने पर संसार त्यागकर दीक्षा ली। कैवल्य प्राप्त हुआ। फिर सुदीर्घ काल तक धर्म प्रचार करके लाखों जीवों को धर्म का प्रतिबोध दिया। अन्त में वैशाख शुक्ला ८ ने सम्मेदशिखर पर एक मास के अनशन के पश्चात् शरीर त्यागकर निर्वाण पद को प्राप्त हुए।
पद्म
सरोवर
समुद्र
विमानभवन
रत्न
राशि
निधूम अग्नि
भगवान अभिनन्दन
Bhagavan Abhinandan
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