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सिंह
गज
वृषभ
लक्ष्मी
पुष्पमाला
चन्द्र
सूर्य
ऋषभ
अजित
| परिशिष्ट १२
सम्भव
त्रिषष्ठि (६३) शलाका पुरुष
२४ तीर्थंकर, १२ चक्रवर्ती, ९ बलदेव, ९ वासुदेव, ९ प्रतिवासुदेव-ये तिरेसठ व्यक्ति महापुरुष कहलाते हैं। इनमें चक्रवर्ती आदि महापुरुषों के सन्दर्भ में ज्ञातव्य हैं
अभिनन्दन।
चक्रवर्ती - मनुष्य लोक के सबसे बड़े सम्राट् को चक्रवर्ती कहते हैं। वे समूचे भरत, ऐरावत अथवा महाविदेह की एक विजय के स्वामी होते हैं। बत्तीस हजार देशों पर उनका अधिकार होता है। बत्तीस हजार नरेश उनकी आज्ञा शिरोधार्य करते हैं। पच्चीस हजार देवता उनकी सेवा में रहते हैं। नवनिधान व चौदह रत्न के वे स्वामी होते हैं। उनके चौंसठ हजार रानियाँ होती हैं। बीस-बीस हजार सोने-चाँदी की एवं सोलह हजार रत्नों की खानें होती हैं। चौरासी-चौरासी लाख हाथी-घोड़े और संग्रामिक रथ होते हैं, छियानवे करोड़ पैदल सेना होती है, निन्यानवे लाख अंगरक्षक होते हैं, सोलह हजार मंत्री होते हैं। उनमें चालीस लाख अष्टापद जितना बल होता है। चक्रवर्ती मनुष्य लोक में जघन्य बीस और उत्कृष्ट एक सौ पचास तक हो सकते हैं।
भरत क्षेत्र के इस अवसर्पिणी काल के बारह चक्रवर्ती महापुरुषों के नाम हैं- १. भरत, २. सगर, ३. मघवा, ४. सनत्कुमार, ५ शांतिनाथ, ६. कुंथुनाथ, ७. अरनाथ, ८. सुभूम, ९ पद्म, १०. हरिषेण, ११ जयसेन, १२. ब्रह्मदत्त ।
बलदेव - बलदेव वासुदेव के मातेर बड़े भाई होते हैं। छोटे भाई के साथ इनका अत्यधिक स्नेह होता है। इनकी माता चार स्वप्न देखती हैं। इनमें दस लाख अष्टापद की ताकत होती है। चार हजार देवता इनकी सेवा करते हैं। हल- मूसल आदि इनके शस्त्र होते हैं जो हजार-हजार देवों से अधिष्ठित माने गये हैं। अधिक प्रेम होने के कारण दोनों भाई साथ ही राज्य करते हैं। वासुदेव की मृत्यु के बाद बलदेव दीक्षा लेकर घोर तपस्यादि द्वारा आत्म-साधना करते हैं फिर कई मोक्ष जाते हैं और कई स्वर्गगामी होते हैं।
Illustrated Tirthankar Charitra
विमल
सुमति
वासुदेव - वासुदेव पूर्व-भव में अवश्य निदान नियाणा करके नरक या स्वर्ग में जाकर फिर वासुदेव रूप में अवतार लेते हैं। उनके गर्भ में आने पर माता सात स्वप्न देखती हैं। शरीर का वर्ण कृष्ण होता है। बीस लाख अष्टापद जितना बल होता है और प्रतिवासुदेव को मारकर वे त्रिखण्डाधीश बनते हैं। सोलह हजार देश उनके अधीन होते हैं। सोलह हजार नरेश एवं आठ हजार देवता उनकी सेवा करते हैं। उनके सोलह हजार रानियाँ होती हैं। सात रत्न होते हैं जो हजार-हजार देवों से सेवित कहे गये हैं।
प्रतिवासुदेव - प्रतिवासुदेव पूर्व जन्म में नियाणा करके आते हैं और प्रायः तीन खण्ड के राजा होते हैं। इनकी ऋद्धि वासुदेव से कुछ कम होती है। ये निश्चित रूप से वासुदेव के हाथ से मारे जाते हैं एवं नरक में जाते हैं।
अनन्त
पद्मप्रभ
मनुष्य लोक में बलदेव, वासुदेव व प्रतिवासुदेव जघन्य बीस एवं उत्कृष्ट एक सौ साठ हो सकते हैं। इनके परस्पर मिलने के विषय में यह मान्यता है कि तीर्थंकर तीर्थंकर, चक्रवर्ती चक्रवर्ती, वासुदेव वासुदेव तथा वासुदेव-चक्रवर्ती प्रायः कभी नहीं मिल सकते।
धर्म
( २१४ )
शान्ति
कुन्धु
(त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र)
सचित्र तीर्थंकर चरित्र
अर
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