________________
ऋषभ
अजित
सम्भव
अभिनन्दन
सुमति
पद्मप्रभ
परिशिष्ट ९
तीर्थंकरों के दीक्षा गुरु
सिंह
तीर्थंकर स्वयं प्रतिबुद्ध होते हैं। उनके दीक्षा गुरु वे स्वयं होते हैं। किन्तु पूर्व-भव के सन्दर्भ में यह कहा जाता है कि जिस भव में तीर्थंकर-गोत्र का बन्ध होता है, उस भव में वे संसार से विरक्त होकर जिन धर्माचार्यों के पास दीक्षित होते हैं वे उनके दीक्षा गुरु कहलाते हैं। इस युग में हुए चौबीस तीर्थंकरों के पूर्व-भव के दीक्षा गुरु निम्न प्रकार हैं
गज
संख्या तीर्थकर
संख्या तीर्थकर
वृषभ
१. ऋषभनाथ २. अजितनाथ ३. संभवनाथ ४. अभिनन्दन ५. सुमतिनाथ
पद्मप्रभ ७. सुपार्श्वनाथ ८. चन्द्रप्रभ ९. सुविधिनाथ १०. शीतलनाथ ११. श्रेयांसनाथ १२. वासुपूज्य
दीक्षा गुरु तीर्थंकर वज्रसेन आचार्य अरिदमन आचार्य स्वयंप्रभ आचार्य विमलचन्द्र आचार्य विनयनन्दन मुनि पिहिताश्रव आचार्य अरिदमन मुनि युगन्धर मुनि जगनन्द आचार्य प्रस्ताघ मुनि वज्रदन्त आचार्य वज्रनाभ
१३. विमलनाथ १४. अनन्तनाथ १५. धर्मनाथ १६. शान्तिनाथ १७. कुंथुनाथ १८. अरनाथ १९. मल्लीनाथ २०. मुनिसुव्रत २१. नमिनाथ २२. अरिष्टनेमि २३. पार्श्वनाथ २४. महावीर
दीक्षा गुरु आचार्य सर्वगुप्त मुनि चित्तरक्ष स्थविर विमलवाहन राजर्षि धनरथ आचार्य संवर मुनि संवर आचार्य धर्मघोष मुनि नन्दन मुनि सुदर्शन आचार्य श्रीषेण तीर्थंकर जगन्नाथ आचार्य पोट्टिल
लक्ष्मी
पुष्पमा
(त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र)
चन्द्र
卐
Illustrated Tirthankar Charitra
( २०० )
सचित्र तीर्थकर चरित्र
JahreuocaLOTTITIETTATUTTO TOM
or private
sorarase omy
www.jaineitorary.org