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पारीशष्ट ८
महाविदेह क्षेत्र में तीर्थंकर (बीस विहरमान)
सिंह
गज
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वृषभ
लक्ष्मी
महाविदेह क्षेत्र में एक सौ बीस तीर्थकर वर्तमान में विद्यमान हैं। बीस विहरमान तीर्थंकरों के नाम हैं१. श्री सीमन्धर स्वामी
११. श्री वज्रधर स्वामी २. श्री युगमन्धर स्वामी
१२. श्री चन्द्रानन स्वामी ३. श्री बाहु स्वामी
१३. श्री चन्द्रबाहु स्वामी ४. श्री सुबाहु स्वामी
१४. श्री भुजंगम स्वापी ५. श्री सुजात स्वामी
१५. श्री ईश्वर स्वामी श्री स्वयंप्रभ स्वामी
१६. श्री नेमिप्रभ स्वामी ७. श्री ऋषभानन स्वामी
१७. श्री वीरसेन स्वामी श्री अनन्तवीर्य स्वामी
१८. श्री महाभद्र स्वामी ९. श्री सूरप्रभ स्वामी
१९. श्री देवयश स्वामी १०. श्री विशालधर स्वामी
२०. श्री अजितवीर्य स्वामी श्री सीमन्धर स्वामी
'सीमन्धर' प्रभु पहले विहरमान तीर्थंकर हैं। इनका जन्म 'जम्बूद्वीप' के पूर्व महाविदेह क्षेत्र में पुष्पकलावती विजय की पुण्डरीकिणी नगरी में हुआ। इनके पिता का नाम महाराजा 'श्रेयांस' और माता का नाम 'सत्यकी' है। चौदह स्वप्नों से सूचित उस पुत्र-रत्न के वृषभ का लांछन-चिह्न देखकर सबने उन्हें महापुरुष माना और उनका नाम दिया ‘सीमन्धर' अर्थात् संयम की सीमा को धरने वाले।
युवावस्था में आपका देहमान पाँच सौ धनुष का हो गया। रुक्मणी नाम की एक सुन्दर राजकन्या से आपका विवाह हुआ।
तिरासी लाख पूर्व तक संसार में रहकर दीक्षित बने, केवलज्ञान प्राप्त किया। आपकी सर्वायु चौरासी लाख पूर्व की है।
वर्तमान काल में महाविदेह क्षेत्र की विभिन्न विजयों में विचरण करने वाले बीस विहरमान तीर्थंकरों का जन्म जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में हुए १७वें तीर्थंकर श्री कुंथुनाथ निर्वाण के बाद एक ही समय में हुआ था।
२0वें तीर्थंकर मुनिसुव्रत के निर्वाण के बाद सबने एक ही समय में दीक्षा ग्रहण की। ये बीसों तीर्थंकर एक मास तक छद्मावस्था में रहकर एक ही समय में केवलज्ञानी हुए।
ये बीसों तीर्थंकर भविष्यकाल की चौबीसी के सातवें तीर्थंकर श्री उदयनाथ जी के निर्वाण के बाद एक साथ मोक्ष जायेंगे।
ये बीसों तीर्थंकर जिस समय मोक्ष पधारेंगे उसी समय महाविदेह क्षेत्र के दूसरे विजय में जो-जो तीर्थंकर उत्पन्न हुए होंगे, वे दीक्षा ग्रहण करके तीर्थंकर पद प्राप्त करेंगे। ऐसी परम्परा अनादिकाल से चली आ रही है और भविष्य में भी अनन्तकाल तक चलती रहेगी, क्योंकि कम-से-कम बीस तीर्थंकर तो अवश्य विद्यमान रहते हैं। इनसे कभी कम नहीं होते हैं और अधिक-से-अधिक १७0 तीर्थंकरों के होने की नियामकता है।
पुष्पमाला
चन्द्र
सूर्य
Illustrated Tirthankar Charitra
( १९८ )
सचित्र तीर्थंकर चरित्र
विमल
अनन्त
धर्म
शान्ति
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