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ऋषभ
अजित
सम्भव
अभिनन्दन
सुमति
पद्मप्रभ
सिंह
वन्दना राग द्वेष विजेतारं ज्ञातारं विश्व वस्तुनः। शक्र पूज्यं गिरामीशं तीर्थेशं स्मृतिमानये॥
-आचार्य श्री वादिदेव सरि राग द्वेष को जीतने वाले, सकल वस्तु तत्त्व के ज्ञाता, देव-देवेन्द्र द्वारा पूज्य, वाणी के स्वामी तीर्थपति (तीर्थंकर भगवान) को अपनी स्मृतियों में स्थापित कर वन्दना करता हूँ। Installing him in my memory I do Vandana (bow and pay homage to the conqueror of attachment and aversion, the knower of all universe, the revered one for Indra (the king of gods), the lord of the word, the lord of the religious ford, the Tirthankar.
--Acharya Shri Vadidev Suri
गज
वृषभ
लक्ष्मी
तीर्थंकरों का शाश्वत सन्देश जे अईया, जे य पडुप्पन्ना, जे य आपमेस्सा अरहंता भगवंतो ते सव्वे एवमाइक्खंति, एवं भासंति, एवं पण्णवेंति, एवं परूवेंतिसव्वे पाणा सव्वे भूता सव्वे जीवा सव्वे सत्ता, ण हंतव्वा, ण अज्जावेयव्वा, ण परिघेतव्वा, ण परितावेयव्वा, ण उद्दवेयव्वा। एस धम्मे सुद्धे णिइए सासए समिच्च लोयं खेयण्णेहिं पवेइए। जो अर्हत् भगवान अतीत में हुए हैं, वर्तमान में हैं और भविष्य में होंगे वे सब ऐसा आख्यान करते हैं, ऐसा भाषण करते हैं, ऐसा प्रज्ञापन करते हैं और ऐसा प्ररूपण करते हैं"किसी भी प्राणी, भूत, जीव और सत्त्व का हनन नहीं करना चाहिए; उन पर शासन नहीं करना चाहिए; उन्हें दास नहीं बनना चाहिए; उन्हें परिताप-कष्ट नहीं देना चाहिए; उनका प्राण-वियोजन नही करना चाहिए।" यह धर्म, जिसका आत्मज्ञ अर्हतों ने, समस्त लोक को जानकर, प्रतिपादन किया है, शुद्ध है, नित्य है, तथा शाश्वत सत्य है।
-आचारांग सूत्र (४/१/१-२)
पुष्पमाला|
चन्द
All omniscients of all times explain, speak, propagate, and proclaim that nothing which breathes, which exists, which lives, and which has any essence or potential of life, should be destroyed, or ruled over, or subjugated, or harmed, or denied its essence or potential. This truth, propagated by self-knowing Arhats, after comprehending all there is in the universe, is pure undefilable, and eternal.
-Acharang Sutra (4/1/1-2)
सूर्य
विमल
अनन्त
धर्म
शान्ति
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