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________________ ऋषभ अजित सम्भव अभिनन्दन सुमति पद्मप्रभ गज श्रमण-जीवन महा अभिनिष्क्रमण आज मार्गशीर्ष कृष्णा दशमी का दिन था। कुमार वर्द्धमान ने षष्ठ भक्त (दो दिन) का उपवास तप किया था। उनके महा अभिनिष्क्रमण के लिये चन्द्रप्रभा नामक शिविका (पालकी) तैयार की गई। दिन का चतुर्थ प्रहर आ गया। वर्द्धमान राजभवन से निकल चन्द्रप्रभा शिविका में आरूढ़ हुए। क्षत्रियकुण्ड के ईशान कोण में स्थित ज्ञातखण्ड उद्यान में विशाल जुलूस पहुँचा। अशोक वृक्ष के समीप शिविका रखी गयी। वर्द्धमान शिविका से नीचे उतरे। हजारों आँखें अपलक कुमार वर्द्धमान को देख रही थीं। उनका स्वर्ण कान्ति युक्त शरीर सुन्दर वस्त्रों, आभूषणों से सज्जित था, परन्तु दूसरे ही क्षण कुमार ने धीरे-धीरे शरीर पर से सभी आभूषण उतार दिये। बहुमूल्य वस्त्र भी उतार दिये। स्वयं इन्द्र ने भगवान के वस्त्र, आभूषण एवं केशों को एक स्वर्ण पात्र में ग्रहण किया। अब उनके गौर स्कन्ध पर देवेन्द्र द्वारा प्रदत्त एक हिम-सा शुभ्र उज्ज्वल देवदूष्य लहरा रहा था। (चित्र M-13/1) __ पूर्व दिशा की ओर अभिमुख होकर वर्द्धमान ने अपने हाथों पंचमुष्टि लोच किया, फिर धीर गम्भीर स्वर में 'नमो सिद्धाणं'-सिद्ध भगवान को नमस्कार करते हुए संयम जीवन की प्रतिज्ञा ग्रहण की-“करेमि वृषभ सामाइयं सव्वं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि मैं जीवन-भर के लिये समभाव की साधना स्वीकार करता हूँ। समस्त पापकारी प्रवृत्तियों को त्यागता हूँ।" भगवान महावीर ने अपने साधक जीवन का कठोर संकल्प स्वीकारते हुए प्रतिज्ञा की-“मैं अपने साधक जीवन में प्रत्येक स्थिति में समभाव से रहूँगा। मानव, तिर्यंच, देव-दानव आदि द्वारा किया हुआ कोई भी परीषह/उपसर्ग चाहे जितना भी भीषण हो, मैं पूर्ण समभाव के साथ उन्हें सहन करूँगा। जब तक केवलज्ञान नहीं प्राप्त कर लूँ मेरे अविचल और अडिग चरण सिद्धि के आग्नेय पथ पर सतत अविराम बढ़ते रहेंगे।" सभी ने अत्यन्त भक्तिपूर्वक श्रमण वर्द्धमान को वन्दन किया। (चित्र M-13/2) दरिद्रता धुल गई दो दिन के निर्जल उपवास के साथ कठोर संयम व्रत का संकल्प ग्रहण करके महाश्रमण अपनी मस्ती में मस्त, स्वस्थ मन, वचन के साथ बिना रुके, बिना पीछे मुड़े सीधे, कंकरीले-पथरीले पथ पर चल रहे हैं। चलते ही जा रहे हैं। पीछे से अचानक एक दीन स्वर पुका रता है। महाश्रमण वर्द्धमान के चरणों की गति मंद होती है। एक चन्द्र | कृशकाय जर्जर देह वाला वृद्ध ब्राह्मण लाठी के सहारे तेज गति से चलता-हाँफता आकर महाश्रमण के चरणों में गिर पड़ता है। दयनीय चेहरे से वेदना बरस रही है। कंठ से दीन स्वर फूट रहा है-“कुमार वर्द्धमान ! मेरा भी उद्धार कर दो, मुझे भी कुछ देकर जाओ, मेरी दरिद्रता दूर कर दो।" ___ महाश्रमण महावीर ने देखा, ब्राह्मणकुण्ड निवासी सोम शर्मा है यह। किसी समय महाराज सिद्धार्थ के दरबार में आया करता था। दयालु महाराज धन-धान्य, वस्त्रादि से ब्राह्मण की भरपूर सहायता करते थे। तब सुखी था यह, किन्तु महाराज के स्वर्गवास के पश्चात् इसे कभी नहीं देखा । Illustrated Tirthankar Charitra ( १२६ ) सचित्र तीर्थकर चरित्र लक्ष्मी पुष्पमाला Jan Education international 2010 US For Private Personaruser only www.jainelibrary.org
SR No.002582
Book TitleSachitra Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1995
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size13 MB
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