SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ऋषभ अजित सम्भव अभिनन्दन। सुमति पदाप्रभ Stories of a number of famous ascetic contemporaries of Bhagavan Arishtanemi are glittering gems in the heap of Jain scriptures. Some more prominent names are child ascetic Gajasukumar, great ascetic Dhandhan Rishi, Thavaccha-putra Shraman etc. Bhagavan Arishtanemi got liberated, at the age of one thousand years, on the eighth day of the bright half of the month of Ashadh. A number of historians accept that Arishtanemi, the cousin of Shrikrishna, was a historical figure who greatly contributed towards vegetarianism, compassion and Ahimsa. This is the point where Jain prehistory fuses with history. सिंह गज १३. भगवान पार्श्वनाथ वृषभ लक्ष्मी पुष्पमाला भगवान पार्श्वनाथ का जन्म ईसा पूर्व नवीं-दशवीं शताब्दी की घटना है। भगवान महावीर के निर्वाण से लगभग ३८० वर्ष पूर्व भगवान पार्श्वनाथ का जन्म वाराणसी के राजा अश्वसेन की महारानी वामादेवी के गर्भ से पौष वदी दशमी के पवित्र दिन हुआ। पूर्व-भव अन्य तीर्थंकरों की भाँति भगवान पार्श्वनाथ के भी १० पूर्व-भवों का वर्णन जैन ग्रंथों में उपलब्ध है। इन पूर्व-जन्मों की घटनाओं पर विचार करने से प्रतीत होता है कि भगवान पार्श्वनाथ क्षमा और करुणा के अवतार रहे हैं। हर जन्म में उन्होंने अपने प्रतिरोधी कमठ द्वारा जलाई गई उपसर्ग तथा उपद्रवों की अग्नि पर क्षमा की शीतल जल वर्षा की है और उसे "क्षमा करो, भूल जाओ !" का पाठ पढ़ाने का प्रयत्न किया है। कमठ और मरुभूति पोतनपुर के अरविंद राजा के राजपुरोहित के दो पुत्र थे-कमठ और मरुभूति। कमठ दुराचारी और क्रोधी स्वभाव का था। मरुभूति शान्त और सदाचारी। पिता की मृत्यु के बाद राजपुरोहित पद का अधिकारी कमठ था, परन्तु उसके दुष्ट स्वभाव के कारण राजा ने मरुभूति को राजपुरोहित का पद दिया। इस कारण कमठ मरुभूति से मन ही मन जलता था। मरुभूति की अनुपस्थिति में कमठ ने उसकी पत्नी वसंधरा से प्रेम सम्बन्ध जोड़ लिया। मरुभूति को इस बात का पता चला तो उसने राजा से शिकायत की। राजा ने कमठ को अपमानित/प्रताड़ित कर देश से निकाल दिया। अपमानित कमठ ने मरुभूति के प्रति क्रोध की गाँठ बाँध ली और वह जंगल में जाकर संन्यासी वेश में रहने लगा। कुछ समय बाद मरुभूति के मन में आया-मेरे द्वारा शिकायत करने पर ही राजा ने मेरे भाई कमठ को अपमानित और निष्कासित किया है, इसलिए अब मुझे उनसे क्षमा माँगनी चाहिए। वह कमठ को खोजता हुआ जंगल में एक पहाड़ी के नीचे पहुँचा। कमठ को वहाँ देखकर उसने उसके चरणों में झुककर क्षमा माँगी-"भैया ! मुझे क्षमा कर दो।" किन्तु दुष्ट स्वभाव कमठ ने अपने वैर का बदला लेने की नीयत से नीचे झुके मरुभूति के सिर पर बड़ा पत्थर पटक दिया। मरुभूति की वहीं पर मृत्यु हो गई। (चित्र P-11) Illustrated Tirthankar Charitra (९०) सचित्र तीर्थकर चरित्र सूर्य
SR No.002582
Book TitleSachitra Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1995
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy