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आयारो
६५. जस्सेते उदय-सत्थ-समारंभा परिण्णाया भवंति से हु मुणी
,
परिणात - कम्मे |
-त्ति बेमि ।
चउत्थो उद्देसो
तेउकाइयाणं अत्थित्त-पदं
६६. 'से बेमि' —णेव सयं लोगं अब्भाइक्खेज्जा, व अत्ताणं
अभाइक्खेज्जा ।
जे लोगं अब्भाइक्खइ, से अत्ताणं अब्भाइक्खइ,
जे अत्ताणं अभाइक्खइ, से लोगं अब्भाइक्खइ ।
६७. जे दीह लोग - सत्थस्स खेयण्णे, से असत्थस्स खेयण्णे । जे असत्थस्स खेणे, से दीहलोग-सत्थस्स खेयण्णे ।
६८. वीरेहि एवं अभिभूय दिट्ठ, संजेतेहिं सया जतेहि सया अप्पमतेहि ।
उकाइयहिंसा-पदं
६६. जे पत्ते गुणट्ठिए, से हु दंडे पवुच्चति ।
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