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उपधान-श्रुत
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१६. आत्म-शुद्धि के द्वारा आयत-योग (मन, वचन और शरीर की संयत प्रवृत्ति)
को प्राप्त होकर भगवान् उपशांत हो गए। उन्होंने ऋजु भाव से [तप की साधना की] | वे सम्पूर्ण साधना-काल में समित रहे।
१७. मतिमान् माहन काश्यपगोत्री महर्षि महावीर ने संकल्प-मुक्त होकर पूर्व प्रतिपादित विधि का आचरण किया।
-ऐसा मैं कहता हूं।
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