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________________ विमोक्ष ३०१ १२७. वह अनशन सत्य है। उसे सत्यवादी (प्रतिज्ञा का निर्वाह करने वाला), वीतराग, संसार-समुद्र का पार पाने वाला, 'अनशन का निर्वाह होगा या नहीं', इस संशय से मुक्त, सर्वथा कृतार्थ, परिस्थिति से अप्रभावित, शरीर को क्षणभंगुर जान कर, नाना प्रकार के परीषहों और उपसर्गों को मथकर, 'जीव पृथक् है, शरीर पृथक् है'-इस भेद-विज्ञान की भावना तथा भैरव अनशन का अनुपालन करता हुआ [क्षुब्ध न हो] । १२८. ऐसा करने पर भी उसकी वह काल-मृत्यु होती है। १२९. उस मृत्यु से वह अन्तक्रिया (पूर्ण कर्म-क्षय) करने वाला भी हो सकता है । १३०. यह मरण प्राण-मोह से मुक्त भिक्षुओं का आयतन, हितकर, सुखकर, कालोचित, कल्याणकारी और भविष्य में साथ देने वाला होता है। -ऐसा मैं कहता हूं। अष्टम उद्देशक अनशन १. धीर, संयमी और ज्ञानी भिक्षु साधना के क्रम में प्राप्त होने वाले अनशन (आनुपूर्वी-विमोक्ष या अव्याघात मरण) का उपयुक्त समय समझते हैं, तब वे बाल-मरण से भिन्न तीनों (भक्त-प्रत्याख्यान, इंगिणिमरण और प्रायोपगमन) अनशनों के विधान का ज्ञान करते हैं ।१९ भक्त-प्रत्याख्यान २. वे धर्म के पारगामी प्रबुद्ध भिक्षु दोनों (शरीर, उपकरण आदि बाह्य वस्तुओं तथा राग आदि आन्तरिक ग्रन्थियों) की हेयता का अनुभव करते हैं । प्रव्रज्या आदि के क्रम से चल रहे साधक-शरीर को छोड़ने के लाभ का विवेक कर प्रवृत्ति से निवृत्त हो जाते हैं। + यहां 'आरम्भ' शब्द शरीर-धारण के लिए आहार, पानी आदि का अन्वेषण तथा सेवा, स्वाध्याय आदि संयमानुकूल प्रवृत्ति के अर्थ में विवक्षित है। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002574
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages388
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size5 MB
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