________________
शस्त्र-परिज्ञा
अथवा दक्षिण दिशा से आया हूं, अथवा पश्चिम दिशा से आया हूं, अथवा उत्तर दिशा से आया हूं, अथवा ऊर्ध्व दिशा से आया हूं, अथवा अधो दिशा से आया हूं, अथवा किसी अन्य दिशा से आया हूं, अथवा अनुदिशा से आया हूं।'
४. इसी प्रकार कुछ मिनुष्यों को यह ज्ञात होता है
मेरी आत्मा पुनर्जन्म लेने वाली है, जो इन दिशाओं और अनुदिशाओं में अनुसंचरण करती है; जो सब दिशाओं और सब अनुदिशाओं से आकर अनुसंचरण करता है, वह मैं हूं।"
५. [जो अनुसंचरण को जान लेता है] वही आत्मवादी, लोकवादी, कर्मवादी
और क्रियावादी है।
आश्रव ६. मैंने क्रिया की थी, करवाई थी [और करने वाले का अनुमोदन किया था।
मैं क्रिया करता हूं, करवाता हूं और करने वाले का अनुमोदन करता हूं। मैं क्रिया करूंगा, करवाऊंगा] और करने वाले का अनुमोदन करूंगा।
संवर ७. लोका में होने वाले] ये सब कर्म-समारम्भ परिज्ञातव्य होते हैं...जानने
और त्यागने योग्य होते हैं।
आश्रव के परिणाम ८. यह पुरुष, जो क्रिया को नहीं जानता और नहीं त्यागता, वही इन दिशाओं
+ इस प्रसंग में लोक का अर्थ असंयत लोक है।
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org