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विमोक्ष
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सेवा का कल्प
७६. जिस भिक्षु का यह प्रकल्प (समाचारी या मर्यादा) होता है—'मैं ग्लान हूं
और मेरे सार्मिक साधु अग्लान हैं; उन्होंने मेरी सेवा करने के लिए मुझे कहा है, मैंने अपनी सेवा के लिए उनसे अनुरोध नहीं किया है। निर्जरा के उद्देश्य से उन सार्मिकों के द्वारा की जाने वाली सेवा का मैं अनुमोदन करूंगा।'
अथवा 'साधर्मिक भिक्षु ग्लान है, मैं अग्लान हूं। उन्होंने अपनी सेवा करने के लिए मुझे अनुरोध नहीं किया है, मैंने उनकी सेवा करने के लिए उनसे अनुरोध किया है । निर्जरा के उद्देश्य से उन सार्मिकों की सेवा करूंगापारस्परिक उपकार की दृष्टि से।'
७७. भिक्षु यह प्रतिज्ञा ग्रहण करता है, 'मैं [सार्मिक भिक्षुओं के लिए] आहार आदि लाऊंगा और [उनके द्वारा] लाया हुआ स्वीकार भी करूंगा।'
अथवा 'मैं [उनके लिए] आहार आदि लाऊंगा, किन्तु [उनके द्वारा] लाया हुआ स्वीकार नहीं करूंगा।'
अथवा 'मैं उनके लिए आहार आदि नहीं लाऊंगा, किन्तु उनके द्वारा लाया हुआ स्वीकार करूंगा।'
अथवा 'मैं न [उनके लिए] आहार आदि लाऊंगा और न [उनके द्वारा] लाया हुआ स्वीकार करूंगा।' [भिक्षु ग्लान होने पर भी इस प्रकल्प और प्रतिज्ञा का पालन करे। जंघाबल क्षीण होने पर भक्त-प्रत्याख्यान अनशन द्वारा समाधि-मरण करे।]
७८. वह लाघव का चिन्तन करता हुआ [वस्त्र का क्रमिक विसर्जन करे] ।
७९. अल्प वस्त्र वाले मुनि के [उपकरण-अवमौदर्य तथा काय-क्लेश] तप होता
८०. भगवान ने जैसे अल्पवस्त्रत्व का प्रतिपादन किया है, उसे उसी रूप में जानकर
सब प्रकार से, सर्वात्मना (सम्पूर्ण रूप से) समत्व का सेवन करे-किसी की अवज्ञा न करे।
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