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________________ विमोक्ष २८१ ४६. वह उन वस्त्रों को न धोए, न रंगे और न धोए-रंगे हुए वस्त्रों को धारण करे।१२ ४७. वह ग्रामान्तर जाता हुआ वस्त्रों को छिपाकर न चले। ४८. वह अल्प (अतिसाधारण) वस्त्र धारण करे ।१३ ४६. यह वस्त्रधारी भिक्षु की सामग्री (उपकरण-समूह) है। ५०. भिक्षु यह जाने कि हेमन्त बीत गया है, ग्रीष्म ऋतु आ गई है, तब वह यथा परिजीर्ण वस्त्रों का विसर्जन करे । उनका विसर्जन कर-१४ ५१. या एक अन्तर (सूती वस्त्र) और उत्तर (ऊनी वस्त्र) रखे ।" ५२. या वह एक-शाटक [रहे] ।१४ ५३. या वह अचेल (वस्त्र-रहित) [हो जाए] । ५४. वह लाघव का चिन्तन करता हुआ [वस्त्र का क्रमिक विसर्जन करे] । ५५. अल्प वस्त्र वाले मुनि के [उपकरण-अवमौदर्य तथा काय-क्लेश] तप होता है। ५६. भगवान् ने जैसे अल्प-वस्त्रत्व का प्रतिपादन किया है, उसे उसी रूप में जानकर सब प्रकार से, सर्वात्मना (सम्पूर्ण रूप से) समत्व का सेवन करेकिसी की अवज्ञा न करे। शरीर-विमोक्ष ५७. जिस भिक्षु को यह लगे-मैं [स्त्री से] आक्रान्त हो गया हूं और मैं इस अनुकूल परीषह को सहन करने में समर्थ नहीं हूं; उस स्थिति में कोई-कोई संयमी भिक्षु अपनी सम्पूर्ण प्रज्ञा और अन्तःकरण को काम-वासना से समेट कर उसका सेवन नहीं करने के लिए उद्यत हो जाता है । १५.११ x मिलाइए ६६५॥ ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002574
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages388
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size5 MB
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