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________________ विमोक्ष २६६ विवेक ६. आशुप्रज्ञ भगवान महावीर ने ज्ञान-दर्शनपूर्वक धर्म का जैसे प्रतिपादन किया है, [उसकी वैसी व्याख्या करे] । १०. अथवा [उस धर्म की व्याख्या करने में समर्थ न हो, विवाद बढ़ता हो, तो] वाणी के विषय का गोपन करे-मौन रहे।' ११. हिंसा सर्वत्र (अन्य दर्शनों में) सम्मत है।' १२. मुनि उसी (हिंसा) का अतिक्रमण [कर जीवन-यापन] करे। १३. यह महान् विवेक कहा गया है । १४. धर्म गांव में होता है या अरण्य में ? वह न गांव में होता है और न अरण्य ___ में-तुम जानो। मतिमान् महावीर ने यह प्रतिपादित किया है।' १५. तीन अवस्थाएं होती हैं। आर्य मनुष्य सम्बोधि को प्राप्त कर उन अवस्थाओं ___में प्रवजित होते हैं। १६. जो हिंसा आदि कर्म करने में उपशांत होते हैं, वे अनिदान (राग-द्वेष के बन्धन से मुक्त) कहलाते हैं। अहिंसा १७. ऊंची, नीची व तिरछी आदि सब दिशाओं में, सब प्रकार से जीवों के प्रति भिन्न-भिन्न प्रकार का कर्म-समारम्भ किया जाता है। १०. मेधावी उस कर्म-समारम्भ का विवेक कर इन सूक्ष्म जीव-कायों के प्रति स्वयं दण्ड का प्रयोग न करे, दूसरों से न करवाए और करने वालों का अनुमोदन न करे। १९. जो भिक्षु इट सूक्ष्म जीव-कायों के प्रति दण्ड का प्रयोग करते हैं, उनके प्रति भी हम दया प्रदर्शित करते हैं। ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002574
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages388
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size5 MB
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