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________________ विमोक्ष २६७ ५. अथवा वे [परस्पर-विरोधी] वादों का प्रतिपादन करते हैं । जैसे[अस्तित्ववादी मानते हैं-] लोक वास्तविक है। [नास्तित्ववादी मानते हैं-] लोक वास्तविक नहीं है। [अचलवादी मानते हैं-] आदित्य-मंडल स्थिर है । [चलवादी मानते हैं-] आदित्य-मंडल चल है । [सृष्टिवादी मानते हैं-] लोक सादि है। [असृष्टिवादी मानते हैं-] लोक अनादि है। [सृष्टिवादी मानते हैं-] लोक सान्त है । [असृष्टिवादी मानते हैं-] लोक अनन्त है। [कुछ दार्शनिक मानते हैं--] सुकृत है। [कुछ दार्शनिक मानते हैं-] दुष्कृत है। [कुछ दार्शनिक मानते हैं-] कल्याण है। [कुछ दार्शनिक मानते हैं-] पाप है। [कुछ दार्शनिक मानते हैं-] साधु है। [कुछ दार्शनिक मानते हैं-] असाधु है । [कुछ दार्शनिक मानते हैं---] निर्वाण है। [कुछ दार्शनिक मानते हैं-] निर्वाण नहीं है । [कुछ दार्शनिक मानते हैं-] नरक है। [कुछ दार्शनिक मानते हैं-.] नरक नहीं है। ६. वे परस्पर-विरोधी वादों को स्वीकार करते हुए अपने-अपने धर्म का निरूपण करते हैं। ७. तुम जानो, 'ये एकांगी वाद अहेतुक हैं-हेतुशून्य हैं।' ८. उन (हेतुशून्य सिद्धान्त का निरूपण करने वाले दार्शनिकों) का धर्म न सुआख्यात होता है और न सुनिरूपित । + वैकल्पिक अनुवाद इस प्रकार है शाश्वतवादी मानते हैं-] लोक कूटस्थ नित्य है। + वैकल्पिक अनुवाद इस प्रकार है [परिवर्तनवादी मानते हैं-] लोक परिवर्तनशील है। x मुनि एकांगी दृष्टिकोण वाले दार्शनिकों के संस्तव (गाढ़ परिचय) में न रहे। प्रयोजनक्श बह वहां जाए, तब तत्व-चर्चा चलने पर, उन्हें कहे ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002574
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages388
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size5 MB
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