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आयारो
३. सर्वजीव-मैत्री ४. आगमज्ञता ५. अनाशातना
नागार्जुनीय वाचना के अनुसार जो मुनि बहुश्रुत, बहु आगमों का अध्येता, दृष्टान्त और हेतु के प्रयोग में कुशल, धर्म-कथा की योग्यता से सम्पन्न, क्षेत्र, काल और पुरुष को समझने वाला होता है, वही धर्म की व्याख्या करने के लिए अर्ह होता है। इस प्रसंग में 'केऽयं पुरिसे कं च गये' (२।१७७) यह सूत्र द्रष्टव्य है। अन्न, पान आदि के लिए धर्म-कथा करना निषिद्ध है।
सूत्र-१०८ २५. 'संग' शब्द के तीन अर्थ किए जा सकते हैं--आसक्ति, शब्द आदि इन्द्रियविषय और विघ्न। __आसक्ति को छोड़ने का उपाय है-आसक्ति को देखना। जो आसक्ति को नहीं देखता, वह उसे छोड़ नहीं पाता। भगवान् महावीर की साधना-पद्धति में जानना और देखना अप्रमाद है, जागरूकता है ; इसलिए वह परित्याग का महत्त्वपूर्ण उपाय है। जैसे-जैसे जानना और देखना पुष्ट होता है, वैसे-वैसे कर्म-संस्कार क्षीण होता है। उसके क्षीण होने पर आसक्ति अपने-आप क्षीण हो जाती है।
सूत्र-११३ २६ मृत्यु सचमुच संग्राम है। संग्राम में पराजित होने वाला वैभव से विपन्न और विजयी होने वाला वैभव से सम्पन्न होता है । वैसे ही मृत्यु-काल में आशंसा और भय से पराजित होने वाला साधना से च्युत हो जाता है तथा अनासक्त और अभय रहने वाला साधना के शिखर पर पहुंच जाता है। इसीलिए आगमकार का निर्देश है कि मृत्यु के उपस्थित होने पर मूढ़ता उत्पन्न नहीं होनी चाहिए। मूढ़ता से बचने की तैयारी जीवन के अन्तिम क्षण में नहीं होती। वह पहले से करनी होती है। उसकी मुख्य प्रवृत्ति है-शरीर और कषाय का वशीकरण । तुलना, सूत्रकृतांग सूत्र १।७।३०।
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