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आयारो
इच्छा से उनका सेवन करना चाहता है, पर सेवन-काल में अपहरण, रोग, मृत्यु आदि अनेक विघ्न उपस्थित हो जाते हैं। मनुष्य इष्ट विषय चाहता है, पर प्रत्येक इष्ट विषय के साथ अनिष्ट विषय अनचाहा आ जाता है। काम अपूर्ण हैं, इसलिए वे मनुष्य की तृप्ति को पूर्ण नहीं कर सकते । फलतः जैसे-जैसे उनका सेवन होता है, वैसे-वैसे अतृप्ति बढ़ती जाती है। इस क्रम से उनका पार पाना असम्भव हो जाता है।
सूत्र-४० ११. अवमोदर्य का अर्थ है-अल्पीकरण । इसके दो प्रकार हैं : द्रव्य अवमोदर्यवस्त्र और आहार का अल्पीकरण तथा भाव अवमौदर्य-क्रोध आदि का अल्पीकरण ।
वस्त्र क्रोध आदि का निमित्त बन सकता है । उसका त्याग करने वाला भावतः भी अवमौदर्य करता है।
सूत्र--४२ १२. सब प्रकार के काम करने वाले लोग अर्हत् के शासन में दीक्षित होते थे। कुछ लोग गृहवास के कर्म को याद दिलाकर उन्हें कोसते, जैसे-"ओ जुलाहा! तू साधु हो गया, पर क्या जानता है ?" "ओ लकड़हारा ! कल तक लकड़ियों का गट्ठर ढोता था, आज साधु बन गया !"
सूत्र-४३ १३. सम्यक् चिन्तन के पांच प्रकार हैं-कोई गाली दे, पीटे या अंग-भंग करे, तब मुनि चिन्तन करे
१. यह पुरुष यक्ष से आविष्ट है । २. यह पुरुष उन्मत्त है। ३. यह पुरुष दर्पयुक्त चित्त वाला है।
४. मेरा किया हुआ कर्म उदय में आ रहा है ; इसलिए यह पुरुष मुझे गाली देता है, बांधता है, पीटता है।
५. मैं इस कष्ट को सहन करूंगा, तो मेरे कर्म क्षीण होंगे।
सूत्र-४८ १४. वृत्तिकार ने 'आणाए मामगं धम्म' इस पाठ के दो अर्थ किए हैं--
१. आज्ञा से मेरे धर्म का सम्यग् अनुपालन करे।
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