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धुतं
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८. तू देख - नाना कुलों में आत्म-भाव (अपने-अपने कर्मोदय) से उत्पन्न व्यक्ति
[ रोग ग्रस्त हो जाते हैं ] ।
१. गण्डमाला
२. कोढ़
३. राजयक्ष्मा
४. अपस्मार (मृगी या मूर्च्छा )
५. काणत्व
६. जड़ता -- अवयवों का जड़ होना
७. हस्त - विकलता ( कूणित्व )
८. कुबड़ापन
९. उदर रोग
१०. गूंगापन ११. शोथ
१२. भस्मक रोग
१३. कम्पन वात
१४. पीठसप - पंगुता १५. श्लीपद - हाथीपगा
१६. मधुमेह
- ये सोलह रोग क्रमशः कहे गए हैं । कभी-कभी आतंक (सद्योघाती रोग ) और अनिष्ट स्पर्श प्राप्त होते हैं । उन [ रोग और आतंक से पीडित ] मनुष्यों की मृत्यु का पर्यालोचन कर, उपपात और च्यवन को जानकर तथा कर्म के विपाक का पर्यालोचन कर उसके यथार्थ रूप को सुनो।
९. अन्धकार में होने वाले प्राणी अन्ध कहलाते हैं । '
१०. प्राणी उसी ( क्लेश- पूर्ण अवस्था ) को एक या अनेक बार प्राप्त कर तीव्र और मंद स्पर्शो का प्रतिसंवेदन करते हैं ।
११. तीर्थंकरों ने इस ( तथ्य ) का प्रतिपादन किया है ।
प्राणी को प्राणी द्वारा क्लेश
१२. [ अनेक प्रकार के ] प्राणी होते हैं - वर्षज -- वर्षा में उत्पन्न होने वाले मेंढक आदि, रसज-- रस में उत्पन्न होने वाले कृमि आदि, जल में होने वाले जलचर जीव, आकाशगामी - पक्षी ।
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