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लोकसार
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६०. समत्वदर्शी x वीर प्रान्त (नीरस) और रूक्ष [ आहार आदि ] का सेवन करते
हैं ।
६१. यह जन्म-मृत्यु के प्रवाह को तरने वाला मुनि तीर्ण, मुक्त और विरत कहलाता है ।
- ऐसा मैं कहता हूं ।
चतुर्थ उद्देशक
अव्यक्त का एकाकी विहार
६२. जो भिक्षु अव्यक्त अवस्था में [ अकेला ] ग्रामानुग्राम विहार करता है, वह उपद्रवों से अभिभूत होता है और अवांछनीय पराक्रम करता है।
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६३. [ अव्यक्त ] मनुष्य [ थोड़े से प्रतिकूल ] वचन से भी कुपित हो जाते हैं ।"
६४. [ अव्यक्त ] मनुष्य प्रशंसित होने पर महान् मोह से मूढ़ हो जाता है ।
६५. अज्ञानी और अद्रष्टा (अव्यक्त) मनुष्य बार-बार आने वाली बहुत सारी बाधाओं का पार नहीं पा सकता । "
६६. ['मैं अव्यक्त अबस्था में अकेला विहार करूं' - ] यह तुम्हारे मन में भी न हो ।
६७. यह महावीर का दर्शन है [ - अव्यक्त के एकाकी विहार में ये दोष उनके द्वारा दृष्ट हैं ।]
देखिए, २।१६४ का पाद-टिप्पण ।
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