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________________ लोकसार ૧૨૭ ४१. [भगवान् महावीर ने परिषद् के बीच कहा-"जैसे मैंने ज्ञान, दर्शन और चारित्र की समन्वित आराधना की है, वैसी आराधना अन्यत्र दुर्लभ है। इसलिए मैं कहता हूं कि [तुम इस समन्वित आराधना के पथ को प्राप्त कर] शक्ति का गोपन मत करो।"११ ४२. कोई पुरुष पहले उठता है और जीवन-पर्यन्त उत्थित ही रहता है-कभी नहीं गिरता। कोई पुरुष पहले उठता है और बाद में गिर जाता है। कोई पुरुष न पहले उठता है और न बाद में गिरता है । ४३. जो भिक्षु [लोक] का त्याग कर, फिर उसका आश्रय लेता है, वह भी वैसा [गृहवासी जैसा हो जाता है। ४४. इस (उत्थान-पतन के कारण) को जानकर भगवान् ने कहा-पंडित मूनि आज्ञा में रुचि रखे, स्नेह न करे, रात्रि के प्रथम और अन्तिम भाग में स्वाध्याय और ध्यान करे, सदा शील का अनुपालन करे, [लोक में सारभूत तत्त्व को] सुनकर काम और कलह से मुक्त बन जाए।" ४५. इस (कर्म-शरीर) के साथ युद्ध कर; दूसरों के साथ युद्ध करने से तुम्हें क्या लाभ ?" ४६. युद्ध के योग्य [सामग्री] निश्चित ही दुर्लभ है।" ४७. भगवान् ने युद्ध के प्रसंग में परिज्ञा और विवेक का प्रतिपादन किया। ४८. [उत्थित होकर] च्युत होने वाला अज्ञानी साधक गर्भ आदि [दुःखच ] में फंस जाता है। ४९. इस (अर्हत के शासन) में यह बलपूर्वक कहा जाता है-रूप और हिंसा में [आसक्त होने वाला उत्थित होकर भी च्युत हो जाता है ] । ५०. केवल वही मुनि अपने पथ पर आरूढ़ रहता है, जो [विषय-लोक और हिंसा-] लोक को भिन्न दृष्टि से देखता है-लोक-प्रवाह की दृष्टि से नहीं देखता।" xदेखें, ३१८३॥ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002574
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages388
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size5 MB
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