________________
शीतोष्णीय
८५. यह अहिंसक और निरावरण द्रष्टा का दर्शन है ।
८६. जो पुरुष [ कर्म के] उपादान ( राग-द्वेष ) को रोकता है, वही अपने किए हुए [कर्म ] का भेदन कर पाता है ।
८७. क्या सत्यद्रष्टा के कोई उपाधि होती है या नहीं होती ? नहीं होती ।
Jain Education International 2010_03
१४३
For Private & Personal Use Only
- ऐसा मैं कहता हूं ।
www.jainelibrary.org