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शीतोष्णीय
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७८. वीर साधक लोक के संयोग को त्याग कर महायान [मोक्ष या मोक्ष मार्ग]
को प्राप्त होते हैं । वे आगे से आगे बढ़ते जाते हैं। वे [असंयत] जीवन जीना नहीं चाहते।
७९. एक का विवेक करने वाला अनेक का विवेक करता है। ___अनेक का विवेक करने वाला एक का विवेक करता है । २३
८०. आज्ञा में श्रद्धा करने वाला मेधावी होता है।
८१. पुरुष आज्ञा से [कषाय लोक को जानकर अकुतोभय हो जाता है।
-उसे किसी भी दिशा से भय नही होता ।
८२. शस्त्र उत्तरोत्तर तीक्ष्ण होता है। अशस्त्र उत्तरोत्तर तीक्ष्ण नहीं होता-वह
एकरूप होता है ।२४
८३. जो क्रोधदर्शी है, वह मानदर्शी है ।
जो मानदर्शी है, वह मायादर्शी है। जो मायादर्शी है, वह लोभदर्शी है। जो लोभदर्शी है, वह प्रेयदर्शी है। जो प्रेयदर्शी है, वह द्वेषदर्शी है। जो द्वेषदर्शी है, वह मोहदी है। जो मोहदर्शी है, वह गर्भदर्शी है। जो गर्भदर्शी है, वह जन्मदर्शी है । जो जन्मदर्शी है, वह मृत्युदर्शी है । जो मृत्युदर्शी है, वह नरक दी है। जो नरकदर्शी है, वह तिर्यंचदर्शी है । जो तिर्यचदर्शी है, वह दुःखदर्शी है ।
८४. मेधावी क्रोध, मान माया, लोभ, प्रेय, द्वेष, मोह, गर्भ, जन्म, मृत्यु, नरक,
तिर्यंच और दुःख को छिन्न करे।
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