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शीतोष्णीय
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१८. कर्ममुक्त (शुद्ध) आत्मा के लिए कोई व्यवहार नहीं होता - नाम और गोत्र का व्यपदेश नहीं होता । "
१९. उपाधि कर्म से होती है ।"
२०. कर्म का निरीक्षण कर [ उसे तोड़ने का प्रयत्न करो ] ।
२१. कर्म का मूल हिंसा है।x
२२. पुरुष कर्म का निरीक्षण कर पूर्ण संयम को स्वीकार करे ।
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२३. पुरुष [ राग और द्वेष - इन] दो अंतों से दूर रहे ।
२४. मेधावी [ राग-द्वेष को ] जाने और छोड़े ।
२५. मतिमान् पुरुष [ विषय ] लोक को जानकर, लोकसंज्ञा (विषयासक्ति) को त्याग कर [ संयम में ] पराक्रम करे ।
ऐसा मैं कहता हूं ।
द्वितीय उद्देशक
परमबोध
२६. हे आर्य ! तू जन्म और वृद्धि को देख । "
२७. तू जीवों [ के कर्म-बंध और कर्म विपाक ] को जान और उनके सुख [-दुःख ] को देख+ 1
* इस सूत्र का वैकल्पिक अनुवाद इस प्रकार है-हिंसा का मूल कर्म है ।
+ इस सूत्र का वैकल्पिक अनुवाद इस प्रकार है-तू सब प्राणियों को [आत्म-तुल्य ] समझ
और [ इस सत्य को ] पहचान - [ जैसे तुझे ] सुख [प्रिय और दुःख
अप्रिय है, वैसे ही
सबको सुख प्रिय और दुःख अप्रिय है ।]
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