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________________ शीतोष्णीय १२५ ८. जागृत और वैर से उपरत (सबका मित्र) व्यक्ति वीर होता है। ९. हे वीर ! तू इस प्रकार [ज्ञान, अनासक्ति, सहिष्णुता, जागृति और मैत्री के प्रयोग द्वारा] दु:खों से मुक्ति पा जाएगा। १०. जन्म और मृत्यु से परतन्त्र तथा मोह से सतत मूढ़ बना हुआ मनुष्य धर्म को नहीं जानता। ११. [सुप्त] मनुष्यों को आतुर देखकर पुरुष निरन्तर अप्रमत्त रहे । १२ मतिमन् ! तू मननपूर्वक इसे देख । १३. दुःख हिंसा से उत्पन्न है-यह जानकर [तू सतत अप्रमत्त रहने का अभ्यास कर। १४. मायी और प्रमादी मनुष्य बार-बार जन्म लेता है। १५. शब्द और रूप की उपेक्षा करने वाला ऋजु (संयमी) होता है। जो मृत्यु से आशंकित रहता है, वह मृत्यु से मुक्त हो जाता है । १६. जो कामनाओं के प्रति अप्रमत्त है, असंयत प्रवृत्तियों से उपरत है, वह पुरुष वीर और अपने-आप में सुरक्षित (आत्मगुप्त) होता है। [जो अपने आप में सुरक्षित होता है], वह अन्तस् को जानने वाला (क्षेत्रज्ञ) होता है। १७. जो [विषयों के] विभिन्न पर्यायों में होने वाली आसक्ति के अंतस् को जानता है, वह अनासक्ति के अंतस् को जानता है। जो अनासक्ति के अंतस् को जानता है, वह [विषयों के विभिन्न पर्यायों में होने वाली आसक्ति के अंतस् को जानता है। x वैकल्पिक अनुवाद-जो काम से आशंकित रहता है, वह मृत्यु से मुक्त हो जाता है। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002574
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages388
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size5 MB
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