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शीतोष्णीय
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८. जागृत और वैर से उपरत (सबका मित्र) व्यक्ति वीर होता है।
९. हे वीर ! तू इस प्रकार [ज्ञान, अनासक्ति, सहिष्णुता, जागृति और मैत्री
के प्रयोग द्वारा] दु:खों से मुक्ति पा जाएगा।
१०. जन्म और मृत्यु से परतन्त्र तथा मोह से सतत मूढ़ बना हुआ मनुष्य धर्म को
नहीं जानता।
११. [सुप्त] मनुष्यों को आतुर देखकर पुरुष निरन्तर अप्रमत्त रहे ।
१२ मतिमन् ! तू मननपूर्वक इसे देख ।
१३. दुःख हिंसा से उत्पन्न है-यह जानकर [तू सतत अप्रमत्त रहने का अभ्यास
कर।
१४. मायी और प्रमादी मनुष्य बार-बार जन्म लेता है।
१५. शब्द और रूप की उपेक्षा करने वाला ऋजु (संयमी) होता है। जो मृत्यु
से आशंकित रहता है, वह मृत्यु से मुक्त हो जाता है ।
१६. जो कामनाओं के प्रति अप्रमत्त है, असंयत प्रवृत्तियों से उपरत है, वह पुरुष
वीर और अपने-आप में सुरक्षित (आत्मगुप्त) होता है। [जो अपने आप में सुरक्षित होता है], वह अन्तस् को जानने वाला (क्षेत्रज्ञ) होता है।
१७. जो [विषयों के] विभिन्न पर्यायों में होने वाली आसक्ति के अंतस् को
जानता है, वह अनासक्ति के अंतस् को जानता है। जो अनासक्ति के अंतस् को जानता है, वह [विषयों के विभिन्न पर्यायों में होने वाली आसक्ति के अंतस् को जानता है।
x वैकल्पिक अनुवाद-जो काम से आशंकित रहता है, वह मृत्यु से मुक्त हो जाता है।
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