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________________ लोक-विजय १०९ जीवन नहीं चल सकता -- ऐसी धारणा रूढ़ होती है । असंयम इसी धारणा की परिणति है | अध्यात्म ने इस धारणा के सम्मुख अहिंसा और अपरिग्रह का सिद्धान्त प्रतिपादित किया और यह स्थापित किया कि अहिंसा और अपरिग्रह के द्वारा भी जीवन चल सकता है। इस स्थापना से संयम की निष्पत्ति हुई । वह संयम असंयम जीने वालों के लिए बहुत आश्चर्य का विषय है । इसलिए अध्यात्म की भाषा में वह 'अहोविहार' है । सूत्र - २७ ६. संयम में रति और असंयम में अरति करने से चैतन्य और आनन्द का विकास होता है । संयम में अरति और असंयम में रति करने से उसका ह्रास होता है; इसलिए साधक को यह निर्देश दिया है कि वह संयम से होने वाली अरति का निवर्तन करे । सूत्र - ३१-३४ ७. कोई प्यासा हाथी पानी पीने को झील में गया । वह दलदल में फंस गया । उसने जैसे-जैसे निकलने का प्रयत्न किया, वैसे-वैसे वह उसमें फंसता गया । आखिर वह मर गया। इसी प्रकार कोई मनुष्य मोह की प्यास बुझाने के लिए विषयों के जलाशय में गया । वह आसक्ति के दलदल में फंस गया । वह जैसे-जैसे उससे निकलने का प्रयत्न करता है, वैसे-वैसे उसमें फंसता जाता है। आखिर संयमी - जीवन से उसकी मृत्यु हो जाती है । कोई साधक लज्जा, गौरब या परवशता के कारण वेष को नहीं छोड़ता और विषयों की खोज करता है । वह वेष में गृहस्थ नहीं होता और आचरण में मुनि नहीं होता । सूत्र--३६-३७ ८. अलोभ को लोभ से जीतना - यह प्रतिपक्ष का सिद्धान्त है । शान्ति से क्रोध, मृदुता से मान और ऋजुता से माया निरस्त हो जाती है, वैसे ही अलोभ से लोभ निरस्त हो जाता है । जैसे आहार-परित्याग ज्वर वाले के लिए औषधि है, वैसे ही लोभ का परित्याग असंतोष की औषधि है - यथाहारपरित्यागः ज्वरतस्यौषधं तथा । लोभस्यैवं परित्यागः असंतोषस्य भेषजम् ॥ कुछ पुरुष लोभ सहित दीक्षित होते हैं, किन्तु यदि वे अलोभ से लोभ को जीतने का प्रयत्न करते हैं, तो वे वस्तुतः साधक ही होंगे। जो पुरुष लोभ-रहित होकर दीक्षित होते हैं, वे ध्यान के द्वारा अथवा भरत चक्रवर्ती की भांति शीघ्र ही Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002574
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages388
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size5 MB
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