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________________ लोक-विजय १०५ १६५ यह जन्म-मृत्यु के प्रवाह को तैरने वाला मुनि तीर्ण, मुक्त और विरत कहलाता है । ऐसा मैं कहता हूं। संयम की सम्पन्नता और विपन्नता १६६. आज्ञा का पालन नहीं करने वाला मुनि [संयम-धन से] दरिद्र होता है । १६७. साधना-शून्य पुरुष [साधना-पथ का] निरूपण करने में ग्लानि का अनुभव करता है। १६८. यह (आज्ञा का पालन करने वाला) वीर पुरुष प्रशंसित होता है।३२ १६६. सुवसु मुनि लोक-संयोग (अर्थ, परिवार और राग-द्वेष) का अतिक्रमण कर देता है। १७०. सुवसु मुनि नायक (मोक्ष की ओर ले जाने वाला) कहलाता है। बंध-मोक्ष १७१. इस जगत् में मनुष्यों के जो दुःख हैं, वे विदित हैं। कुशल पुरुष (तीर्थंकर) उस दुःख का विवेक बतलाते हैं । ३३ १७. [दुःख-मुक्ति के लिए] पुरुष कर्म का सर्व प्रकार से विवेक करे । १७३. जो अनन्य को देखता है, वह अनन्य में रमण करता है। जो अनन्य में रमण करता है, वह अनन्य को देखता है।३४ धर्म-कथा १७४. [धर्मकथी] जैसे सम्पन्न को उपदेश देता है, वैसे ही विपन्त को देता है । जैसे विपन्न को उपदेश देता है, वैसे ही सम्पन्न को देता है। १७५. [धर्म-कथा में किसी के सिद्धान्त या इष्ट व्यक्ति का अनादर करने पर कोई व्यक्ति मार-पीट भी कर सकता है। ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002574
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages388
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size5 MB
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