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लोक-विजय
१३८. तू देख, [जो अर्थार्जन में अमर की भांति आचरण करता था] वह
पीड़ित है।
१३९. [अर्थ-संग्रह का] त्याग नहीं करने वाला क्रन्दन करता है।"
व्याधि-चिकित्सा १४०. तुम उसे जानो, जो मैं कहता हूं।८।।
१४१. चिकित्सा-कुशल वैद्य चिकित्सा में प्रवृत्त हो रहा है । २८.
१४२. वह [चिकित्सा के लिए[ अनेक जीवों का हनन, छेदन, भेदन, लुंपन,
विलुंपन और प्राण-वध करता है ।
१४३. 'पहले किसी ने नहीं किया, [ऐसा आरोग्यवर्द्धक योग] मैं करूंगा'-यह
मानता हुआ [वह जीवों का हनन आदि करता है] १२८
१४४. वह जिसकी चिकित्सा करता है, [वह भी उस हिंसा में सम्मिलित होता
१४५. उस बाल [अपरिपक्व मति वाले मुनि] को देहासक्ति [या हिंसामय
चिकित्सा-प्रसंग से क्या लाभ] ? २७१२९ ।
१४६. जो ऐसी चिकित्सा करवाता है, वह बाल है ।२८
१४७. अनगार ऐसी चिकित्सा नहीं कर सकता।२८
-ऐसा मैं कहता हूं।
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