________________
३८७
जयन्तीप्रकरणवृत्तिः । गाथा २५।२६
अविणयफलमेएसि मन्तीणं ताणं दंसयिस्सामि । इय चिन्तिऊण दइया उट्ठविया कहइ वुत्तन्तं ॥२१॥ तो तीए सो भणिओ पिययम मा कुणसु सम्पयं कोवं ।।
विहिणो वसेण पुरिसो पावइ वसणं जइवि सुहडजो ॥२२॥ उक्तं च
"समाहतं यस्य करैः विसर्पिभिः तमो दिगन्तेष्वपि नावतिष्ठते । स एव भानुः तमसा विभूयते स्पृशन्ति कं कालवशेन नापदः ?" ॥२३॥[ ] चईऊण तह विसायं वच्चसु मज्झ भायपासम्मि ।
जेण सबलं दाउं भुञ्जावइ निययरज्जसिरिं ॥२४॥ यत:
'असहायाण न सिद्धी सुट्ट वि माणुन्नयाण पुरिसाण । अग्गी वि तेयरासी पवणेण विणा न पञ्जलइ" ॥२५॥ इय तीए सो वुत्तो वच्चइ नयरीए तामलित्तीए । कइवयदिणेहिं बाहिं बन्धुमई भणइ तो एवं ॥२६॥ होऊण महाराओ एगागी चेव कह इह पुरीए । पविससि ? रिद्धिविहिणो दीणो खीणो परिस्संतो ॥२७॥ ता सामिय ! खमियव्वं इहट्ठिओ चेव तं विलम्बेहिं । मम भाया बलकलिओ पच्चोलि जाव तुह एइ ॥२८॥ इय भणिउं बन्धुमई वच्चइ नरसुन्दरस्स पासम्मि । देवउलमण्डवम्मि अवन्तिनाहो वि आसीणो ॥२९॥ विहिणो वसेण चिन्तइ एही नरसुन्दरो समिद्धीए । होही महई वेला अहं तु धणियं छुहादुहिओ ॥३०॥ एयमिह पत्तकालं खित्ते पविसित्तु ताव गेन्हामि । चिब्भिडमेगं इय चिन्तिऊण अह पहेण जा तत्थ ॥३१॥ पविसइ तो सो दिट्ठो रक्खगपुरिसेण कोववसगेण । पइदिवसमेस चोरेइ महकत्थे अज्ज लद्धो त्ति ॥३२॥ खायरलउडेण हओ तह जह पडिओ पहम्मि निच्चिट्ठो । बन्धुमई वि य पत्ता रायउलं अचिरकालेण ॥३३॥
15
20
Jain Education International 2010_02
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org