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जयन्तीप्रकरणवृत्तिः । गाथा २२ पढिऊण दिट्ठिवायं सिवसुहलच्छीए संगमोवायं । सुगुरूणन्ते सम्मं किमागओ? जेण तुस्सामि ॥११॥ विणयपुण्णउत्तमंगो सो जम्पइ माइ दिट्ठिवायं पि । अचिरेणावि पढिस्सं कत्थ पुणो तस्स उवलम्भो ? ॥१२॥ जणणी वि भणइ रक्खिय तुहुच्छुवाडम्मि सन्ति जे गुरूणो । तोसलिपुत्तायरिया तयन्तिए लब्भए एसो ॥१३॥ एवं जणणीभणिए रयणीए अज्जरक्खिओ उहु । चिन्तइ नामं पि अहो रमणीयं दिट्ठिवाओ त्ति ॥१४|| एसो अचिरेणं चिय पढियव्वो उज्जमेण गुरुणा । जणणी तोसेयव्वा किमन्नलोएण तुटेण ? ॥१५।। इच्चाए चिन्ताए सिग्धं रयणी वि तस्स अइक्कन्ता । अरुणोदयम्मि गच्छइ गेहाओ उच्छुवाडम्मि ॥१६।। गिहनिग्गयमित्तस्स वि समीवगामाओ दसणनिमित्तं । मित्तो मिलिओ पुच्छइ किमंगं तं रक्खिओ सि त्ति ? ॥१७|| आमं ति तेण भणिए अप्पइ मित्तो वि उच्छुलट्ठीओ । नव सड्ढाओ तुट्ठो गहिऊणं रक्खिओ झत्ति ॥१८॥ पडियप्पइ भणइ गिहे जणणीए अप्पिऊण कहियव्वं । पढमं चिय माइ मए हिटेणं रक्खिओ दिवो ॥१९॥ सयमवि चिन्तइ एसो नवअज्झयणाणि दिट्ठिवायस्स । दसमद्धं सिग्घं चिय निविग्धं चेव पढियव्वं ॥२०॥ एवं विचिन्तयन्तो तुरियं चिय उच्छुवाडयं पत्तो । परिभावइ साहूणं वन्दणविहिजाणगं कमवि ॥२१॥ एत्थन्तरमि ढड्डरसड्ढो साहूण वन्दणविहिन्नू । पुन्नपरिणामपगरिसवसेण तत्थागओ झत्ति ॥२२॥ तम्मग्गमणुसरन्तो धणओ इव विहियउत्तरासंगो । निस्सीहियाए पुव्वं वसहीए रक्खिओ विसइ ॥२३॥
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