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जयन्तीप्रकरणवृत्तिः । गाथा १९।२०।२१ चिन्तइ निवो वि एवं कुट्ठी पीढच्छलेण पावतरूं । पूइरसेणं सिञ्चइ दुरन्तदुहलक्खफलहेउं ॥३२॥ अइविम्हइओ देवो ओहिन्नाणेण नायरायमणो । जिणपयकमले लीणं संसइ फुल्लन्धयं व निवं ॥३३॥ परिमिट्ठिपायपउमे लीणो भमरो व्व एस नरनाहो । निव्वुयदेहो होही सिवसुहमयरन्दपाणेण ॥३४॥ धम्मोवएसविरए जिणिन्दम्मि निग्गया परिसा । कुट्ठिस्स निग्गहत्थं निवेण तो पेसिया पुरिसा ॥३५॥ मग्गेण तस्स धावन्तयाण पेच्छन्तयाण सो कुट्ठी । नट्ठो नाओ दिव्वो इमेहिं कहिओ नरिन्दस्स ॥३६।। विम्हइयमाणो राया पच्चागन्तूण भणइ जिणपुरओ। को एस कुट्ठरोगी ? उवविट्ठो सामिपयवीढे ॥३७॥ कहियम्मि पुव्वचरिए विम्हयभरिए मणम्मि नरनाहो । पुच्छइ छिक्कासवणे मराइवयणाण किं तत्तं? ॥३८॥ अह भणइ जिणो नरवर ! सिद्धि पत्ताण चेव अह सुहं । एगन्तियमच्चन्तियमणन्तयं होइ नेह पुणो ॥३९॥ अभओ जिणधम्मरओ चिरं जियन्तो घणं कुणइ पुन्नं । परलोए सव्वढे एगावयारो सुरो होही ॥४०॥ जीवन्तो पण कालो जीवाण घायणम्मि अइरसिओ। पञ्चत्तगओ होही सत्तमपुढवीए नेरइओ ॥४१॥ तं पुण नरिन्द जीवसि जाव चिरं ताव रज्जसुहं । आउम्मि परिसम्मत्ते आइमपुढवीए नेरइओ ॥४२॥ एवं वीरजिणेणं तइलोयदिवायरेण वित्थरिए । दद्दुरचरिए हरिए छिक्कासन्देहतिमिरम्मि ॥४३।। सेणियनिवो वियारइ तिहुयणहत्थावलम्बदाणपरे । महहिययट्ठिए वीरजिणम्मि कह होइ नरयगई ? ॥४४॥
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