________________
[१] प्रथमं परिशिष्टम् श्रीधर्मविधिप्रकरणे मूलगाथानामकाराद्यनुक्रमः ॥
गाथांश:
अइदुलहे सम्मत्ते, अक्खुद्दाइगुणेहिं अह अज्जसुहत्थीणं, इय अट्ठा(हि) दुवारेहिं,
इय बारसहा सम्मं,
एयं सिरिधम्मविहिं,
एवं गिरिसरिदुवल
धम्म भणिओ,
कप्पियसमत्थवत्थु - काऊण गंठिभेयं,
खंती य मद्दवऽज्जव, ठत्ति सुदुब्भेओ,
छट्टट्टमाइतवजणियजड़ कह विहु असमत्थो,
जम्हा उ जे अलोहा,
जह कणगंमि परिक्खा, जह कामदेवसड्डो, जह कुसलो वि हु विज्जो, जह सिगुरुसमीवे, जह पढमकसाएहिं,
Jain Education International 2010_02
द्वारम् - गाथा | गाथांश:
७- ४३ |जह सरवरं समंता,
६- ३१ जा गंठी ता पढमं,
५- ३० जियपरिसो जियनिद्दो,
८-५२ जुग्गस्स होइ धम्मो,
७-४८ जे अकलंकं सीलं,
८-५७
२ - ९
७ - ३४
तं पुण निसग्गउवएस
तत्तो अपुव्वविरियस्सु
तत्तो विसुद्धपरिणाम
१ - २ | ता भो भव्वा तुब्भे वि,
२-१३ | तेसिं पासंमि विसुद्ध -
७-४४ | दिसिमाणं भोगवयं, २ - १२ | देसकुलजाइरुवी,
७-३८ | धम्मं अलद्धपुव्वं,
७-४५
धम्मस्स फलं विरई,
५- २९
धम्मस्स होइ लाभो,
१- ४ नमिऊण वद्धमाणं,
३-१७ | पढमकसाया चउरो,
८-५४ | पत्ते सुद्धं दाणं,
१- ६ पंचमहव्वयजुत्तो, ४- २१ पंचविहे आयारे,
For Private & Personal Use Only
द्वारम् - गाथा
८-५०
२-११
५-२४
६-३२
७-३७
७-४२
२-१०
८-५१
८-५५
५-२८
७-४७
५-२३
२-१४
८-४९
२-७
१-१
४-१८
७-३५
५-२७
५-२५
www.jainelibrary.org