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अष्टमं सद्धर्मफलद्वारम्
फुडसत्थियरेहाहिं, भूसइजक्खंगणं अणुदिणं पि । किच्चे भत्तिपयारे, सा गणयंती व तत्तुल्ले ॥११०७॥
आणिय पाणीयं सा, जक्खं ग्रहावइ सयं सुईभूया । पूयइ य तिसंझं पि हु , दूराणीएहि कुसुमेहिं ॥११०८।। उववासएगभत्ता-इतप्परा जक्खमंदिरे तम्मि ।। निवसइ रत्तिदिणं पि हु , जक्खस्सभिओगियसुरु व्व ॥११०९।। एवं उज्जुत्ताए , जक्खो आराहिओ भणइ तं पि । तुट्ठो हं तुह भद्दे !, पत्थेसु जहिच्छियं अत्थं ॥१११०॥ अह विन्नवेइ सिद्धी, जक्खं अक्खीणसंपयं देव ! । जं बुद्धीए दिन्नं , तं दुगुणं मह तुमं देसु ॥११११॥ दिन्नं ति भणिय भोलग-जक्खो जाओ स तक्खणमलक्खो । बुद्धीसमहियरिद्धी, सिद्धी वि कमेण संजाया ॥१११२॥ सिद्धीइ दुगुणरिद्धी, दटुं बुद्धी पुणो वि तं जक्खं । तोसित्ता तीसे वि हु , दुगुणधणं पत्थिउं लेइ ॥१११३।। तं जाणिऊण सिद्धी, जक्खं सेविय करेइ पच्चक्खं । वरदाणपरे तम्मि य, दुट्ठा चिंतइ नियमणम्मि ॥१११४॥ जं किं पि पत्थइस्से, दव्वं जक्खाउ तं इमा बुद्धी । आराहिऊण जक्खं, दुगुणं गिहिस्सइ पुणो वि ॥१११५।। ता तं पत्थेमि अहं, जं दुगुणं मग्गियं हवइ तीसे । दुत्थाणत्थाण कए , इय चिंतिय सा भणइ दुक्खं ॥१११६।। जइ तुट्ठो ता सामिय !, एगं नयणं करेसु मे काणं । विहियं ति जक्खभणिए , सा जाया तक्खणं काणा ॥१११७।। जक्खेण किं पि अहियं, सिद्धीइ पसाइयं ति लोभेण । तं दुगुणं इच्छन्ती, बुद्धी सेवइ पुणो जक्खं ॥१११८॥ मग्गइ य तम्मि तुढे , सा बुद्धी एरिसं असंतुट्ठा । जं सिद्धीए दिन्नं, तं दुगुणं कुणसु मह देव ! ॥१११९॥
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