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विजयचंदचरियं दुन्नि वि समसुहसुहिया दुन्नि वि समदुक्खदुक्खियाओ य । दुन्नि विसमनेहाओ दुन्नि विसमरूवसोहाओ ॥८॥ अह अन्नया कयाई जिणभवणे जिणमई जिणिंदस्स । दिती पवरपईवं दट्टणं धणसिरी भणइ ॥९॥ पियसहि साहेसु फलं दीवयदाणेण जिणवरिंदस्स । जेणाहं पैइसंझं जिणभवणे दीवयं देमि ॥१०॥ भणिया य जिणमईए भद्दे भत्तीइ जिणवरिंदस्स । दीवयविहिदाणफलं सुरनरसुक्खं च मुक्खं च ॥११॥ विमला बुद्धी देहो अखंडिओ हवइ वीयरागाण । दीवयविहिदाणफलं रयणाणि य बहुपगाराणि ॥१२॥ जो जिणवरस्स पुरओ देइ पईवं पराइ भत्तीए । एमेव तस्स मडज्झइ पावपयंगो न संदेहो ॥१३॥ सोऊण धणसिरी वि य जिणपुरओ मंडलं विहेऊण । पुप्फक्खयकयपूयं देइ पईवं सुभत्तीए ॥१४॥ .. एवं पेइदियहं वि य दीवं दितीइ जिणवरिंदस्स । संजायं धणसिरीए जिणधम्मे निच्चलं चित्तं ॥१५॥ दुन्नि वि दिति पईवं तिन्नि वि संज्झाओ जिणवरिंदस्स । भत्तिभरनिब्भराओ जिणिदधम्मिक्कचित्ताओ ॥१६॥ अह धणसिरी सयं वि य नाउं नियजीवियस्स पज्जंतं । गिण्हेइ जिणमईए वयणाओ अणसणं वीहिणा ॥१७॥
१. दुन्न वि । २. साहेह । ३. पि तिसज्झं । ४. बहुप्पयाराणि । ५. पयदियह चिय । ६. जिणवर ।
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