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मुनि नंदीघोषविजय : अदरक सूख जाने के बाद उसे सूंठी कहते जब वह हरा होता है तब अनंतकाय होता है किन्तु सुखा जाने के बाद अनंतकाय नहीं रह पाता । उसी प्रकार आलू की चिप्स सूख जाने के | अनंतकाय नहीं है तथापि दोनों की सुखाने की प्रक्रिया में काफी अन्तर अदरक को सूर्यप्रकाश में रखने पर अपने आप ही सूख जाती है ज आलू को सूर्यप्रकाश में रखने पर वह नहीं सुखेगा किन्तु उसमें सडन लगेगी । आलू को सुखाने के लिये अनिवार्य रूप से उसके टुकड़े पडेंगे । और किसी भी वनस्पति को निर्जीव करने के दो रास्ते हैं अग्नि से पकाना या 2. छूरी से काटना । अर्थात् आलू के अनंत जीव | अपने खुराक के लिये ही हिंसा करना, छूरी से काटना या अग्नि से प जरूरी होने से वह निर्जीव होने पर भी निर्दोष नहीं है । अतः उ खुराक में उपयोग नहीं करना चाहिये ।
डॉ. नंदलाल जैन : आलू आदि में अनंत जीव तो देखे नहीं जाते वह अनंतकाय कैसे ?
मुनि नंदीघोषविजय: आप अनंतकाय की क्या व्याख्या करते हैं ? डॉ. नंदलाल जैन : अनंतकाय अर्थात् एक ही शरीर में अनंत जीव होना ।
मुनि नंदीघोषविजय : बराबर है । एक ही शरीर में अनंत जीव अ का होना अनंतकाय है । आप जो व्याख्या करते हैं उसे ही अच्छी समझें । शास्त्र में कहा है कि साधारण वनस्पतिकाय में अनंत आत्म एक ही शरीर होता है और उस अनंत आत्मा के जन्म-मरण एक ही होते हैं । इतना ही नहीं अपितु उनका आहार -पानी व श्वासोच्छ्वास भी होता है । अतः आप प्याज की एक कोशिका (Cell) या आलू का सूक्ष्म कण जो सूक्ष्मदर्शक ( Microscope) में देखते हैं वह तो अनंत का सिर्फ शरीर ही है । उसी कोशिका में ही अनंत आत्मायें होती हैं। हम कभी भी शरीर से आत्मा को पृथक् देख नहीं सकते हैं । ह देखते हैं वह सिर्फ शरीर ही है । उसी एक शरीर में ही अनंत आ होती हैं । क्या आत्मा शरीर से भिन्न दिखाई दे सकती है ?
डॉ. नंदलाल जैन : क्या यह कल्पना नहीं है ?
मुनि नंदीघोषविजय : नहीं, हम किसी भी साधन से अनंत आत्म
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