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________________ इन तीन में से कम से कम शरीर तो सब को होता ही है, चाहे वह जीव अत्यंत निम्नतम कक्षा अर्थात् प्राथमिक अवस्था मे क्यों न हो ? जैनदर्शन अनुसार मन केवल हाथी, गाय, घोडे आदि पशु व चिड़िया, तोता, मैना, कोयल आदि पक्षी, मनुष्य, देव व नारकी को ही होता है । जबकि एकेन्द्रिय माने जाते पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु, वनस्पति व बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय व मनरहित पशु, पक्षी, जलचर जीव और असंज्ञी (संमूर्छिम) मनुष्य को पौदगलिक मन नहीं होता है । अतः उन्हीं जीवों को मन द्वारा होने वाला शुभ या अशुभ कर्म का बंध भी नहीं है । अतः उसी कारण से होने वाला जैविक विद्युचुंबकीय शक्ति/क्षेत्र में परिवर्तन भी नहीं है |किन्तु केवल एक शरीर विद्यमान होने से उसके द्वारा होने वाला शुभ या अशुभ कर्मबंध होने से जैविक विद्युचुंबकीय शक्ति/क्षेत्र में परिवर्तन होता है || संसारी अर्थात् कर्म सहित जीव के लिये यही परिबल कभी भी शून्य नहीं होता है । | उसी प्रकार संसारी जीव चाहे ऐसी प्राथमिक अवस्था में हो तो भी उसकी आध्यात्मिक शक्ति कभी भी शून्य नहीं होती है । निगोद अर्थात् आलू, कंद जैसे साधारण वनस्पतिकाय के जीव में भी चार अघाती कर्म संबंधित और उसमें भी खास तौर पर नामकर्म व वेदनीयकर्म संबंधित शुभकर्म कभी भी शून्य नहीं होता है । ठीक इससे उलटा इन चार कर्म संबंधित चाहे इतने अशुभ कर्म इकट्ठे होने पर भी आत्मा की अनंत शक्ति को पूर्णतया आवृत्त करनेमें समर्थ नहीं हो पाते ।। उसी प्रकार आत्मा की अनंत शक्ति का घात करने वाले घातीकर्म (ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय व अंतराय) का चाहे इतना समूह इकट्ठा होने पर भी आत्मा की अनंत शक्ति को पूर्णतया आवृत्त नहीं कर सकते हैं। - इस प्रकार समग्र सजीव सृष्टि में सबसे प्राथमिक कक्षा के माने जाते जीव में भी जैविक विद्युचुंबकीय शक्ति कभी भी शून्य नहीं होती है । केवलज्ञानी तीर्थंकर परमात्मा में -- 1. शारीरिक शक्ति सबसे ज्यादा होती है क्योंकि उनके शरीर में प्रथम वज्रऋषभनाराच संघनन (हड्डियाँ की संरचना का एक प्रकार) होता है ।। जिसमें सबसे ज्यादा उपसर्ग-परिषह आदि सहन करने की ताकत होती है । 35 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002549
Book TitleJain Dharma Vigyana ki Kasoti par ya Vigyana Jain Dharma ki Kasoti par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandighoshvijay
PublisherBharatiya Prachin Sahitya Vaigyanik Rahasya Shodh Sanstha
Publication Year2005
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Science
File Size6 MB
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