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जैनदर्शन के धर्मग्रंथ / आगमों के प्रणेता, जिनको केवलज्ञान स्वरूप आत्मप्रत्यक्ष ज्ञान द्वारा तीनों लोक के सर्व द्रव्य के तीनों काल के सभी पर्याय / रूपांतर (Phases) का हस्तामलकवत् (हाथ में स्थित निर्मल जल
की तरह) प्रत्यक्ष हुआ है, वही तीर्थंकर परमात्मा है । __ जैनदर्शन अर्थात् जैन तत्त्वज्ञान को आधुनिक विज्ञान के साथ बहुत ही तालमेल है । हालाँकि, जैन विज्ञान वस्तुतः गुणात्मक (Qualitative) है।
और वह तीर्थकर परमात्मा द्वारा कथित है जबकि आधुनिक विज्ञान महदंश में परिमाणात्मक (Quantitative) है तथापि दोनों (जैनदर्शन व आधुनिक विज्ञान ) में उनके असली ख्यालों का आधार तर्क ही है । आल्बर्ट आइन्स्टाइन ने उनके "विज्ञान और धर्म "(1940, Nature, Vol. 146, P. 605-607) नामक लेख में कहा है :
"Science, without religion is lame;
Religion, without science is blind." (बिना धर्म विज्ञान पंगु है, और बिना विज्ञान, धर्म अंधा है।) जैनदर्शन पूर्णतया वैज्ञानिक धर्मदर्शन है । आइन्स्टाइन आगे लिखते हैं: "Science is the attempt at the posterior reconstruction of existence by the process of conceptualization." (नयी अवधारणा प्रस्तुत करने की प्रक्रिया द्वारा किसी भी घटना या
पदार्थ की पश्चात्कालीन पुनर्रचना का प्रयत्न ही विज्ञान है ।) जैनदर्शन में सजीव व निर्जीव पदार्थ सहित इसी ब्रह्मांड की प्रत्येक अवस्था का विचार किया गया है | आइन्स्टाइन भी कहते हैं :
"A person who is religiously enlightened appears to me to be one who has, to the best of his ability, liberated himself from the fetters of his selfish desires." (कोई भी मनुष्य, जो धार्मिक रीति से प्रबुद्ध या संस्कारसंपन्न है, वह ऐसी व्यक्ति है जिसने यथाशक्ति स्वंय को अपनी स्वार्थमय इच्छाओं से मुक्त किया। है, मेरी दृष्टि से वह सबसे ज्यादा शक्तिवान प्रतीत होता है ।)
इस प्रकार आइन्स्टाइन जीवन जीने की जैन पद्धति का वर्णन करते हैं। एक दृष्टि से विज्ञान व अध्यात्म, दोनों एक ही सिक्के के दो पहलुं है । तथापि एक बात स्पष्टतया ख्याल में रहे कि विज्ञान की दुनिया में कुछ भी
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