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सुणह इह जीवगुणसन्निएसु ठाणेसु सारजुत्तायो । वोच्छं कइवइयाओ गाहाओ दिहिवायाओ ॥ २ ॥ उवओगाजोगविही, जेसु अठाणेसु जत्तिया अस्थि । जप्पञ्चइओ बन्धो, होइ जहा जेसु ठाणेसु ॥३॥ बन्धं उदयमुदीरणविहिं च तिन्हं पि तसि संजोगं। बन्धविहाणे य तहा किंचि समासं पवक्खामि ॥४॥ तिरियगतीए चोदस हवंति सेसासु जाण दो दो उ। मग्गणठाणेसेवं, नेयाणि समासठाणाणि ॥५॥ एकारसेसु तिय तिय दोसु चउक्कं च बारसेकम्मि। जीवसमासेसेवं उवओगविही मुणेयवो ॥६॥ नवसु चउक्के एक्के जोगा एगो य दोन्नि पन्नरस । तब्भवगएसु एए भवन्तरगएसु काओगा ॥७॥ उवओगा जोगविही जीवसमासेसु वन्निया एवं । एत्तो गुणेहि सह परिगयाणि ठाणाणि मे सुणसु ॥८॥ मिच्छदिठीसासणमिस्से अजए य देसविरए य । नव संजएसु एवं चोदस गुणनामठाणाणि ॥९॥ सुरनारएसु चत्तारि होन्ति तिरिएसु जाण पंचेव ।
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