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तेज लेसाईया बंधंति न नरविगल सुहुमसिंगं । सेगिंदि थावयव तिरियतिगुज्जोय नव बार ॥१५५॥ सुयदेवी पसायाओ पगरणमेयं समासओ भणियं । समयाओ चंदरिसिया समईविभवाणुसारेणं ॥१५६॥
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॥ इति पंचसंग्रहः समाप्तः ॥
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一
॥ अथ परिशिष्टम् ॥
एग
चारि वीस सोलस भंगा एगिंदियाण चत्ताला । विगलिंदियाण इगवण्ण तिपि ॥१॥ गुणतीसे तीसेवि य भंगाणट्ठाहियाच्छया लसया । पंचिदियतिरिजोगे पणुवीसे बन्धभंगेकं ॥ २ ॥ पणवीसयम्मिएको छायालसया अडुत्तरिगुणतीसे । म जोगट्ट उ सव्वे छायालसया सत्तरसा ॥३॥
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