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एगभवे दुक्खुत्तो चरित्तमोहं उवसमेजा ॥९॥ दुचरिमसमये नियगोदयस्स इत्थी नपुंसगोनोन्नं । समइत्तु सत्त पच्छा किंतु नपुंसोकमारद्धे ॥९५॥
॥ इति सर्वोपशमना ॥
॥ अथ देशोपशममा ॥ मूलुत्तरकम्माणं पगडीठितिमादि होइ चउभेया । देसकरणेहिं देसं समेइ जं देससमणातो ॥१६॥ उधट्टणओवट्टणसंकमकरणाइं हुंति नन्नाई। देसोवसामिथस्सा जा पुष्यो सव्वकम्माणं ॥९७॥ खवगो व सामगो वा पढमकसायाण दसणतिगस्स। देसोवसामगो सो अपुवकरणंतगो जाव ॥९८॥ साइयमाइ चउद्धा देसुवसमणा अणाइसंतीण । मूलुत्तरपगईणं साईअधुवाओ अधुवाओ ॥९९॥ गोयाउयाण दोण्हं चउत्थ छहाण होइ छ सत्तण्हं । साइयमाइ चउद्धा सेसाणं एगठाणस्स ॥१०॥ उवसामणा ठिईए उक्कोसा संकमेण तुल्लायो ।
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