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तत्तो असंखभागा सम्मा मीसाण खंडेइ ॥ ४२ ॥ बहुखंडते मीसं उदयावलि बाहिरं खिवइ सम्मे । अडवाससंतकम्मो सणमोहस्स सो खवगो ॥४३॥ अंतमुहुत्तियखंडं तत्तो उक्किरइ उदयसमयायो । निक्खिवइ असंखगुणं जाव गुणसेढि परे हीणं ॥४४|| उक्किरइ असंखगुणं जाव दुचरिमंति अंतिमे खडे । संखेज्जं सो खंडइ गुणसेढीए तहा देइ ॥४५॥ कपकरणोतक्काले कालंपि करेइ चउसुविगइसु। वेइअसेसो सेढी अण्णयरं वा समारुहइ ॥४६।। तइयचउत्थे तमिव भवम्मि सिझंति दसणे खीणे। जं देवनिरयसंखाउ चरमदेहेसु ते हुंति ॥४७॥ अहवा दसणमोहं पढम उवसामइत्तु सामण्णे। ठिच्चा अणुदइयाणं पढमठितिआवलीनियमा ॥४८॥ पढमुवसमुत्व सेसं यंतमुहुत्ताओ तस्स विज्झाओ। संकेसविसोहीओ पमत्तइयरत्तणं बहुसो।।४९॥ । पुणरवि तिपिणउ करणाई करेइ तइयम्मि एत्थ पुण भेओ अंतो कोडाकोडी बंधं संतं च सत्तण्हं ॥५०॥
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