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( २४४ ) भिन्नमुहुत्ते सेसे जोगकसाउक्कसाई काऊण | संजोयणा विसंजोयगस्स संछोभणा एसिं ॥ ९३ ॥ ईसाणागयपुरिसस्स इत्थियाए व अहवासाए । मास पुहुत्तन्भहिए नपुंसगस्स चरिमछोभो ॥ ९४ ॥ पूरित भोगभूमीसु जीविय वासाणिसंखयाणि तओ हस्तठि देवागय लहुछोभे इथिवेयस्स ॥९५॥ वरिलवरिस्थि पूरिय सम्मत्तमसंखवासियं लभिय । गन्तु मिच्छत्तमओ जहन्नदेवठिनं भोच्चा ॥ ९६॥ आगन्तु लहु पुरिसं संतुभमाणस्स पुरिसवेअस्स । तस्सेव सगे कोहस्स माणमायाणमवि कसिणो ॥ ९७ ॥ चउरुवसमित्त खिष्पं- लोभजसाणं ससंकमस्संते । चउसमगो उच्चस्स खवगो नीया चरिमबन्धे ॥ ९८ ॥ परघाय सकलतसचउ सुसरादिति सासखगति चउरंसं सम्मधुवा रिसभजुया संकामइ विरचिया सम्मो ॥९९ नरयदुगस्स विछोभे पुव्वको डीपुहुत्तनिचियस्स । थावरउज्जोयायवएगिंदीणं नपुंससमं ॥ १०० ॥ तेत्तीसयरा पालिय-तमुहुत्तृणगाई सम्मत्तं ।
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