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(२२७)
नाणा जिएहिं ठाणं असुण्णयं आवलिअसंखं ॥ ६४ ॥ जवमज्झम्मि य बहवो विसेसहीणाओ उभयओ कमसो गंतुमसंखा लोगा अद्धद्धा उभयओ जीवा ॥ ६५ ॥ आवलि असंखभागं तसेसु हाणीण होइ परिमाणं । हाणिदुगन्तरहाणा थावरहाणी असंखगुणा ॥ ६६ ॥ जवमज्झे ठाणाइं असंखभागो उ सेसठाणाणं । हेमि हांति थोवा उवरिंमि संखगुणियाणि ॥ ६७ ॥ दुग चउरट्ठतिसमइग सेसा य असंखगुणणया कमसो कालेऽईए पूछा जिएण ठाणा भमंते ॥ ६८ ॥ तत्तो विसेस हियं जवमज्झा उवरिमाइं ठाणाई । तत्तो कंडगट्ठा तत्तो वि हु सवठाणाई ॥ ६९ ॥ फासणकालप्पबह जह तह जीवाण भणसु ठाणेसु । अणुभागबन्धठाणा अज्झवसाया व एगट्ठा ॥ ७० ॥ ठितिठाणे ठिइठाणे कसाय उदया असंखलोगसमा एक्क्कसाद एवं अणुभागठाणाई ॥ ७९ ॥ थोवाणुभागठाणा जहण्णठितिपढमबंधहेउम्मि । तत्तो विसेसमहिया जाचरमाए चरमहेऊ ॥ ७२ ॥
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